सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उस के औलाद न हुई। उस की माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उस का नजीब दूसरी शादी ना करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा किया गया मगर कोई बात पैदा न हुई। सलीमा बहुत मुतफ़क्किर थी। शादी के बाद बहुत कम लड़कियां ऐसी होती हैं जो औलाद की ख़्वाहिशमंद न हो। उस ने अपनी माँ से कई बार मश्वरा किया। माँ की हिदायतों पर भी अमल किया। मगर नतीजा सिफ़र था।