शान्ति

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दोनों पीरे ज़ैन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंद्र था जिस की लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इस लिए दोनों आहिस्ता आहिस्ता घूँट भर रहे थे मोटी भोरों वाली यहूदन की जानी पहचानी सूरत थी। ये बड़ा गोल मटोल चेहरा, तीखी नाक। मोटे मोटे बहुत ही ज़्यादा सुर्ख़ी लगे होंट। शाम को हिमेशा दरमयान वाले दरवाज़े के साथ वाली कुर्सी पर बैठी दिखाई देती थी। मक़बूल ने एक नज़र उस की तरफ़ देखा और बलराज से कहा। “बैठी है जाल फेंकने।”