सुरजू छोरा - 2

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आकाश छूने की कोशिश में है कमबख्त! ‘‘पवित्रा उन विस्फारित आँखों को देख रही है। ‘‘माँ, मुझे बुखार क्यों नी आता?’’ लाटे ने एक रात पूछ ही लिया था बचपन में, वह एक ठण्डी शाम थी, जब गांव में बर्फीली हवा चलने से कई बच्चे और बड़े बीमार हो रहे थे। पवित्रा उन घरों में सेवा करने जाती स्त्रियाँ पूछती’’ तेरा सुरजू तो ठीक है न...? ‘‘उन्हें विश्वास ही नहीं होता जब गांवों में बीमारी, महामारी सी फैली हो, एक अकेला सुरजू कैसे अछूता रहा सकता है।