दास्तान-ए-अश्क - 25

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श्याम ढल रही थी! एक बेजान श्याम..! जो सुब्हा का उजाला लेकर आने का वादा करके जाती है..! मगर किसको सुब्हा की पहली किरन नसिब थी ये कोई नही जानता था..! जिंदगी अपने रंग बदल रही थी! कहीं कुछ टूटा था..! बस उस घर में कोहराम मच गया था..! सडक पर गुजरने वाला एक मस्त मौला मुसाफिर अपनी घुन मे गाये जा रहा था..! जो हमने दास्ता अपनी सूनाई..आप क्यु रोये..! तबाही तो हमारे दिल पे है छाई आप क्यु रोये..! लेकिन उसकी दास्ता कोई सून ने वाला नही था..! क्योंकि अभी तो बहुत कुछ बाकी था! अगर किसी को इस जहां में सुख नहीं मिलता तो अगले