तेलंगाना एक्सप्रेस लेट हो गई है। पौने दस बजे की जगह अब पौने बारह में चलेगी। मैं वेटिंग रूम में बैठा हुआ था। सहसा, एक चिर-परिचित चेहरे पर मेरी नज़र गई। क्षणांश में मैं जान पाया कि ये त्रिलोकी साहू थे। उनके पास पहुँचते हुए मैंने धीरे से उनके कंधे पर हाथ रखा। वे पीछे पलटे और अचानक मुझे अपने सामने पा कुछ भाव-विह्वल हो आए। उनके चेहरे पर कई तरह के भाव आए और हर भाव अपने साथ किसी न किसी विशिष्ट रंग को समेटे हुए था। अगर किसी के चेहरे के आकाश पर आपको कभी कोई इंद्रधनुष खिलाना है, तो उससे सहसा मिलिए, आपको ऐसा ही अनुभव होगा।