मेरे आने के करीब तीन घंटे बाद शंपा ग्यारह बजे घर आई। अक्सर इतनी देर होती ही रहती थी इसलिए मैं निश्चिंत था। उसे फ़ोन नहीं किया। और करीब हफ्ते भर बाद मैंने फिर खाना भी बना लिया था। भूख लगी थी लेकिन शंपा का इंतजार करता रहा कि आएगी तो उसके ही साथ खाऊंगा। वह पोर्च में कार खड़ी कर अंदर आई तो उसके हाथ में कागज़ों के दो भारी भरकम बंडल थे। वह पैम्पलेट थे। उसके अभियान से संबंधित। जिसे लेने हम दोनों को साथ जाना था। लेकिन वह बताए बिना अकेली ही ले आई। मेरे दिमाग से उतर गया था कि सात बजे उसे कॉल करना था। बंडल उसने एक तरफ पटका। सोफे पर बैठ गई।