सफर कुछ लम्हों का..

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शाम का समय था जब मैं अहमदाबाद से दूर लगभग ६०० मील दूर अपने गांव के लिए ट्रेन में बैठा। तो सामने मैंने एक लड़की को कोई अंग्रेजी कक्षा की किताब पढ़ते देखा। जो इस प्रकार किताब पकड़े हुए थी कि मुझे उसका चेहरा दिखाई नहीं पड़ रहा था। मैने बहुत प्रयास किया पर सफल ना हो पाया। वो पढ़ने में इतनी मग्न थी शून्य बनी बैठी थी। कुछ समय पश्चात उसने अचानक किताब बंद की और मायूस सा चेहरा लेकर उसे अपने बैग के उपर रख दिया।मेरी आंखे इतने देर से खूबसूरत चेहरे को देखने को तड़प रही थी।