बीते रे युग

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रविवार का दिन था, शाम की चाय पर आमंत्रित कर लिया पड़ौस में रहने वाले अशोक जी ने। रोज़ तो दफ़्तर के चक्कर में साथ उठने - बैठने की फुरसत मिल नहीं पाती।आज बाज़ार से लौटते हुए टकरा गए तो न्यौता दे डाला। जाते जाते ये भी कहना न भूले कि भाभी को भी साथ में लाना, कहीं अकेले ही चले आयें ।अच्छा हुआ, घर जाकर  जैसे ही श्रीमती जी को बताया, उनकी बांछे खिल गईं। इतवार का दिन, और शाम की रसोई से छुटकारा मिल जाए, इससे बढ़िया क्या? चाहें चाय पर ही बुलाया हो, पर चाय का मतलब