इश़्क - ख़त

(44)
  • 7.6k
  • 8
  • 1.3k

आषाढ़ का माह था ! गर्मी अपने चर्म पर थी ! सूरज भी पूरे जोश में निकलता था , जब भी किसी के शीर्ष की दिशा में आता मानो उसकी सारी उर्जा खींच लिया करता था ! पक्षी पसीने से गर्मी में जगह-जगह जल ढूंढते फिर रहे है ! जलाशय सूखने लगे है , पेड़ों के पत्ते शाखाएं छोड़ने लगे थे !  मनुष्य तो मानो बिना पंखे कूलर इत्यादि के रह ही ना पाए !   शाम के वक्त मौसम थोड़ा सुहाना होने लगा था गांव के लोग अक्सर बाहर सोया करते थे ! कोई सत्तू बनाता , कोई माटी से