स्वाभिमान - लघुकथा - 47

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तुम्हें क्या लगता है, आज वो आऐगा ? रास्ते की तरफ खुलती खिड़की ने घर की बैठक के दरवाज़े से पूछा। हाँ, आज वो जरूर आऐगा । तुम्हे इतना यकीन कैसे है? पाँच दशक से देख रहा हूँ, इंसान की प्रवृत्ति समझने लगा हूँ ।‌ आदमी-औरत प्रेम में पड़ते हैं फिर बहुत अरमान लेकर शादी करते हैं । समय के साथ आपसी प्रेम दरक जाता है और पूरा जीवन बच्चों में गर्क कर देते हैं ।