स्वाभिमान - लघुकथा - 40

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रात के बारह बजे थे। बिस्तर के दो कोनों दूर दूर पर पड़े दोनों मन से भी निरंतर दूर होते जा रहे थे। मोहन के दम्भी स्वभाव के आगे सरल सविता बेबस हो जाती थी। जरा जरा सी बात पर नुक्स निकालना, औरत को दबाकर रखने की प्रवृत्ति शायद संस्कारों की ही कमी थी। पर उस दिन तो हद हो गई जब अपने दोस्त की जन्मदिन की पार्टी से बेटे के घर जरा सी देरी से आने की जरा सी बात पर वाद विवाद को बढ़ाते हुए मोहन ने गालियों के साथ साथ हाथ उठाने की कसर भी पूरी कर दी। बेटे के दुर्व्यवहार को देखते हुए भी सास ससुर की खामोशी ने सविता को तोड़कर रख दिया था।