स्वाभिमान - लघुकथा - 15

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‘‘अब और विचार न करो, परबतिया। मनीष और बहू कल लौटनेवाले हैं, नागपुर। तुम पारंबी को बैग लेकर तैयार रखना। मैं रामदीन को भेज दूँगी लेने के लिए।’’ ‘‘मैं एक शब्द पारंबी से पूछ लेना चाहती हूँ, मालकिन।’’