स्वाभिमान - लघुकथा - 9

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रानो, आओ चाय पी लो । काम तो चलता रहेगा। नहीं मीता दी, यहीं दे दो । खड़े खड़े ही पी लूँगी। अरी, बाकी महरियाँ तो सारा काम धाम छोड़, ठाठ से बराबर बैठ कर चाय पीती हैं । एक तू ही अनोखी देखी मैंने। सालों से एक ही जवाब। क्यूँ भला। आज ये तो बता।