घोगा

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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें याद नहीं। दिन में कई आदमी मिलने के लिए आते। लेकिन मुझे क़तअन मालूम नहीं, कौन आता था, कौन जाता था, मेरे बिस्तर-ए-मर्ग पर जैसा कि मुझे अब मालूम हुआ, दोस्तों और अज़ीज़ों का जमघटा लगा रहता, बाअज़ रोते, बाअज़ आहें भरते, मेरी ज़िंदगी के बीते हुए वाक़ियात दुहराते और अफ़सोस का इज़हार करते।