ख़ुदा की क़सम

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इधर से मुस्लमान और उधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिन में ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इस के बावजूद उन में ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला ना-काफ़ी है। हिफ़्ज़ान-ए-सेहत का कोई इंतिज़ाम नहीं। बीमारियां फैल रही हैं। इस का होश किस को था। एक इफ़रात-ओ-तफ़रीत का आलम था।