जज़्बा-ए-शहादत

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एक गुप्तचर का जीवन इतना एकाकी और आत्मकेंद्रित होता है कि उसमें उसके अपने भी नहीं झाँक सकते! मोहनलाल के माता-पिता, यहाँ तक कि उसकी पत्नी को भी, उसके काम का पता नहीं था! यह भी पता नहीं था कि वह सुन्नत करवाकर मुसलमान बन चुका था और सिर पर क़फ़न बाँधकर पाकिस्तान में जासूस बनकर आता-जाता है! वह जानता था कि वह कभी भी गिरफ़्तार हो सकता था -ऐसी परिस्थिति में वह मुँह खोलकर अपने देश का नाम तक नहीं ले सकता था और यदि ले भी लेगा, तो यह देश उससे अनजान बनकर उसको ठुकरा सकता था!