मंदिर

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नदी किनारे एक गाँव में कुम्हारों के दो घर थे। उनका काम था नदी से मिट्टी उठाकर लाना और साँचे में ढाल के उसके खिलौने बनाना और हाट में ले जाकर उन्हें बेच आना। बहुत दिनों से उनके यहाँ यही काम होता था और इसी से उनके खाने-पीने, ओढ़ने-पहनने का काम चलता था। औरतें भी काम करती थीं, पानी भरती थी, रसोई बनाकर पति-पुत्र आदि को खिलाती थी और आँवा ठण्डा होने पर उसमें से पके हुए खिलौने निकाल कर उन्हें आँचल से झाड़ पोंछकर चित्रित करने के लिए मरदों के हवाले कर देती थी।