आँखें

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ये आँखें बिलकुल ऐसी ही थीं जैसे अंधेरी रात में मोटर कार की हैड लाईटस जिन को आदमी सब से पहले देखता है। आप ये न समझिएगा कि वो बहुत ख़ूबसूरत आँखें थीं। हरगिज़ नहीं। मैं ख़ूबसूरती और बद-सूरती में तमीज़ कर सकता हूँ। लेकिन माफ़ कीजिएगा, इन आँखों के मुआमले में सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ कि वो ख़ूबसूरत नहीं थीं। लेकिन इस के बावजूद उन में बे-पनाह कशिश थी।