अक़ल-दाढ़

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अक़ल-दाढ़ (सआदत हसन मंटो) “आप मुँह सुजाये क्यों बैठे हैं ” “भई दाँत में दर्द हो रहा है तुम तो ख़्वाह-मख़्वाह ” “ख़्वाह-मख़्वाह क्या आप के दाँत में कभी दर्द हो ही नहीं सकता” “वो कैसे ” “आप भूल क्यों जाते हैं कि आप के दाँत मस्नूई हैं जो असली थे वो तो कभी के रुख़स्त हो चुके हैं” “लेकिन बेगम भूलती तुम हो मेरे बीस दाँतों में सिर्फ़ नौ दाँत मस्नूई हैं बाक़ी असली और मेरे अपने हैं। अगर तुम्हें मेरी बात पर यक़ीन न हो तो मेरा मुँह खोल कर अच्छी तरह मुआइना कर लो।”