उसने उस औरत की हालत देखी और अब वो उसके गाने के बोल का मतलब निकालने लगा. अब औरत गाये जा रही है और वो उसके एक–एक लफ़्ज़ का मतलब निकाल रहा है. महलों की रानी... इसी पे वो बार-बार अटक जा रहा था. वो औरत कहीं से भी महलों की रानी नहीं लग रही थी. वो तो भीख माँग रही थी. दु:ख से बेगानी.... दु:ख दु:ख से बेगानी उसकी ज़िन्दगी में तो दु:ख ही दु:ख है. लग जाए ना धूप तुझे... धूप 31 मई 2015 की चिलचिलाती गर्मी में धूप के अलावा और क्या लगेगा धूप लगे है छाँव मुझे…. एकदम सरेआम झूठ बोल रही हो… धूप से तुम्हारा चेहरा काला पड़ गया है. और कहती हो धूप लगे है छाँव मुझे… काँटों से हो जाए, पाँव ना घायल… सिर्फ़ पाँव तुम्हारे तो हर पोर-पोर में काँटें ही काँटें चुभे हैं. काँटों पे नाचूँगी, बाँध के मैं पायल… तरस आता है मुझे तुम पर और तुम्हारी हालत पर. अपनी शकल देखो! भूख से इस तरह बिलबिला रही हो कि कोई एक नोट दे दे तो शायद नोट ही न खा जाओ. हँह्ह…!!! बड़ी आयी काँटों पे पायल बाँध के नाचने वाली…!!!