परदेशिया (भाग-1)

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रोहन जो इस कहानी का मुख्य पात्र है, के जीवन पर आधारित ये कहानी सम्पूर्ण रूप से नही, पर वास्तविकता से प्रेरित है। इस महीने बाइस साल का होने के बावजूद कुछ विशेष बादलाव नही आया उसके जीवन में। वो कल भी अपने पिता की डांट और गालिया सुनाने का आदी था और आज भी है। और वजह सिर्फ एक है ''उसकी उटपटांग गलतिया"। मगर इसके लिये कभी उसने अपने आप को दोषी नही माना। हमेशा ही अपने किस्मत को दोष दिया। और कुछ हद तक वो सही भी है। वो चाहे जो भी काम करे उसे हमेशा असफलता ही

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परदेशिया (भाग-1)

रोहन जो इस कहानी का मुख्य पात्र है, के जीवन पर आधारित ये कहानी सम्पूर्ण रूप से नही, पर से प्रेरित है। इस महीने बाइस साल का होने के बावजूद कुछ विशेष बादलाव नही आया उसके जीवन में। वो कल भी अपने पिता की डांट और गालिया सुनाने का आदी था और आज भी है। और वजह सिर्फ एक है ''उसकी उटपटांग गलतिया"। मगर इसके लिये कभी उसने अपने आप को दोषी नही माना। हमेशा ही अपने किस्मत को दोष दिया। और कुछ हद तक वो सही भी है। वो चाहे जो भी काम करे उसे हमेशा असफलता ही ...और पढ़े

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