आरव हमेशा से चुपचाप रहने वाला लड़का था। उसकी दुनिया में न दोस्त थे, न महफ़िलें, न ही भीड़ का शोर। उसे लोगों से ज़्यादा किताबों की संगत अच्छी लगती थी। पन्नों के बीच लिखे अनगिनत शब्द उसके साथी बन जाते, और जब भी उसे मन की बात कहनी होती, तो वह अपनी डायरी के पन्नों पर सब उकेर देता। कक्षा में भी वह सबसे अलग कोने में बैठता, जहाँ उसकी ओर किसी की नज़र न जाती। लोग अक्सर उसे अजीब समझते थे, क्योंकि वह न तो अनावश्यक बातचीत करता और न ही हर छोटी-बड़ी बात पर प्रतिक्रिया देता। मगर सच तो यह था कि उसके भीतर शब्दों का एक सागर छिपा था, जिसे वह सिर्फ़ काग़ज़ पर बहने देता।
रूह से रूह तक - भाग 1
आरव हमेशा से चुपचाप रहने वाला लड़का था। उसकी दुनिया में न दोस्त थे, न महफ़िलें, न ही भीड़ शोर। उसे लोगों से ज़्यादा किताबों की संगत अच्छी लगती थी। पन्नों के बीच लिखे अनगिनत शब्द उसके साथी बन जाते, और जब भी उसे मन की बात कहनी होती, तो वह अपनी डायरी के पन्नों पर सब उकेर देता।कक्षा में भी वह सबसे अलग कोने में बैठता, जहाँ उसकी ओर किसी की नज़र न जाती। लोग अक्सर उसे अजीब समझते थे, क्योंकि वह न तो अनावश्यक बातचीत करता और न ही हर छोटी-बड़ी बात पर प्रतिक्रिया देता। मगर सच ...और पढ़े
रूह से रूह तक - भाग 2
हॉस्पिटल के उस कमरे में जहाँ अनाया का कंगन पहली बार उसकी हथेली में आया था, वहीं से आरव ज़िंदगी ने नया मोड़ लिया। वह अक्सर सोचता,"क्यों बचा लिया मुझे… जब मेरा सब कुछ मुझसे छिन गया?"कभी-कभी रातों में वह खिड़की से बाहर आसमान को देखता और फुसफुसाता,“अनाया, अगर तू होती, तो कहती कि भागना हल नहीं है। शायद तू कहती कि अपने दर्द को ताक़त बना।”उस दिन से उसने अपने आँसुओं को कागज़ पर उतारना शुरू किया। डायरी के हर पन्ने में अनाया की यादें थीं,पर धीरे-धीरे वही पन्ने उसके रिसर्च के नोट्स में बदलने लगे।कैंपस की लाइब्रेरी ...और पढ़े