अजीब रात रात का सन्नाटा कुछ अलग ही था। शहर की गलियों में हल्की धुंध तैर रही थी। स्ट्रीट लाइट की टिमटिमाती पीली रोशनी इस धुंध को और रहस्यमयी बना रही थी। हवा ठंडी थी, लेकिन उस ठंडक में एक अजीब बेचैनी भी घुली हुई थी। मानो कोई अदृश्य खतरा पूरे शहर पर छाया हो। पुराने बाज़ार के पीछे वाली गली अक्सर सुनसान रहती थी, लेकिन आज वहाँ हलचल थी। एक आदमी तेज़ी से भागता हुआ दिखाई दिया। उसके कदमों की आवाज़ कच्ची दीवारों से टकराकर गूंज रही थी। उसने बार-बार पीछे मुड़कर देखा, जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। उसकी साँसें तेज़ थीं, चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था।
अधूरा सच - 1
---अध्याय 1 – अजीब रातरात का सन्नाटा कुछ अलग ही था। शहर की गलियों में हल्की धुंध तैर रही स्ट्रीट लाइट की टिमटिमाती पीली रोशनी इस धुंध को और रहस्यमयी बना रही थी। हवा ठंडी थी, लेकिन उस ठंडक में एक अजीब बेचैनी भी घुली हुई थी। मानो कोई अदृश्य खतरा पूरे शहर पर छाया हो।पुराने बाज़ार के पीछे वाली गली अक्सर सुनसान रहती थी, लेकिन आज वहाँ हलचल थी। एक आदमी तेज़ी से भागता हुआ दिखाई दिया। उसके कदमों की आवाज़ कच्ची दीवारों से टकराकर गूंज रही थी। उसने बार-बार पीछे मुड़कर देखा, जैसे कोई उसका पीछा कर ...और पढ़े
अधूरा सच - 2
---अध्याय 2 – पत्रकार की जिज्ञासासुबह का सूरज निकल चुका था, लेकिन आरव की आँखों में अब भी पिछली के मंज़र घूम रहे थे। वह हत्या की जगह से लौट तो आया था, मगर उसका दिमाग बार-बार उसी कागज़ पर अटक जा रहा था, जिस पर सिर्फ एक नाम लिखा था—“सिद्धार्थ”।वह अपने छोटे से कमरे में बैठा था। सामने टेबल पर खुला हुआ लैपटॉप, बगल में अधूरी चाय और दीवार पर टंगी हुई घड़ी जिसकी टिक-टिक मानो उसे याद दिला रही थी कि समय बीत रहा है। पत्रकार होने के नाते उसने कई क्राइम स्टोरीज़ कवर की थीं, लेकिन ...और पढ़े
अधूरा सच - 3
---अध्याय 3 – पहला सुरागसुबह का मौसम ताज़गी भरा था, लेकिन आरव के चेहरे पर थकान साफ़ दिख रही पिछली रात की धमकी उसकी सोच पर भारी थी। वह जानता था कि यह मामला साधारण हत्या नहीं है। किसी बड़ी ताकत ने उसे चुप कराने की कोशिश की है, और अब पीछे हटना उसके लिए संभव नहीं था।आरव ने दफ़्तर जाने की बजाय सीधे पुराने बाज़ार की ओर रुख़ किया। वही जगह, जहाँ हत्या हुई थी। उसकी नज़र उस गली की दीवारों पर घूमी—मिट्टी के धब्बे, खून के निशान और लोगों की जिज्ञासु निगाहें। पुलिस की पीली पट्टी अब ...और पढ़े
अधूरा सच - 4
अध्याय 4 – छुपे हुए चेहरेआरव पूरी रात सो नहीं पाया। उसका दिमाग बार-बार उसी कांच के टुकड़े और वाले नोट पर अटक रहा था। कौन था जो उसके कमरे में घुसा? और क्यों उसने सबूत चुराने की बजाय उसे वापस रख दिया?सुबह होते ही उसने तय किया कि वह इस केस में अकेले नहीं चलेगा। उसे किसी ऐसे साथी की ज़रूरत थी जिस पर वह भरोसा कर सके।वह सीधा रजत के पास पहुँचा। रजत अख़बार के कैफेटेरिया में चाय पी रहा था। आरव उसके सामने बैठा और धीमे स्वर में बोला –“रजत, ये केस बड़ा है। मुझे शक ...और पढ़े
अधूरा सच - 5
अध्याय 5 : मृतक की डायरीरात का सन्नाटा पूरे हॉस्टल को अपने आगोश में ले चुका था। बाहर पेड़ों डालियाँ हवा से टकराकर कराहने जैसी आवाज़ कर रही थीं। कमरे की खिड़की से झाँकती पीली स्ट्रीट लाइट की धुंधली रोशनी, आरव के भीतर के डर और बेचैनी को और गहरा कर रही थी।दिन भर की थकान के बावजूद उसकी आँखों में नींद नहीं थी। दिमाग बार-बार उसी पुराने बंद पड़े कमरे की ओर जा रहा था, जहाँ से उसे डायरी के होने का सुराग मिला था। उसकी छाती धड़क रही थी—कुछ ऐसा जिसे वो समझ नहीं पा रहा ...और पढ़े