शादी... एक ऐसा बंधन जिसे हर लड़की सपनों में संजोती है। लेकिन क्या हो जब यही शादी एक जाल बन जाए? क्या हो जब सिंदूर के पीछे छुपा हो खून का व्यापार? और क्या एक सीधी-साधी लड़की, खुद को राजघराने की हवेली में कैद पाए — जहाँ प्यार नहीं, सिर्फ मौतें होती हैं? ये कहानी है अनन्या की। जिसने शादी तो की थी प्यार के नाम पर, लेकिन मिला उसे एक राक्षस पति, एक हवेली जहाँ हर कोना किसी लाश की कहानी कहता है। अब अनन्या को लेना है बदला... हर उस कत्ल का, हर उस धोखे का... जिसका शिकार वो भी बनी।
खून का टीका - परिचय
परिचय (Novel Introduction):शादी... एक ऐसा बंधन जिसे हर लड़की सपनों में संजोती है।लेकिन क्या हो जब यही शादी एक बन जाए?क्या हो जब सिंदूर के पीछे छुपा हो खून का व्यापार?और क्या एक सीधी-साधी लड़की,खुद को राजघराने की हवेली में कैद पाए —जहाँ प्यार नहीं, सिर्फ मौतें होती हैं?ये कहानी है अनन्या की।जिसने शादी तो की थी प्यार के नाम पर,लेकिन मिला उसे एक राक्षस पति,एक हवेली जहाँ हर कोना किसी लाश की कहानी कहता है।अब अनन्या को लेना है बदला...हर उस कत्ल का, हर उस धोखे का...जिसका शिकार वो भी बनी।---️ लेखक परिचय (Author Bio):प्रियंका कुमारी, एक ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 1
अध्याय 2 - ई खून का निशान"…और जब अन्नया ने सीढ़ियों से नीचे कदम रखा, उसकी नज़र दरवाज़े पर उस लाल धब्बे पर पड़ी। वह धब्बा ताज़े खून का था… और तभी पीछे से सरोज की दबे पांव आती परछाई दीवार पर उभरी।"रात के सन्नाटे में सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। बाहर आकाश में बादल गरज रहे थे और हल्की-हल्की बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं। अन्नया की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे अपना सीना फटता हुआ महसूस हो रहा था।"ये… खून यहाँ कैसे आया?" अन्नया की आवाज़ काँप रही थी, आँखें चौड़ी ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 2
गाँव के पुराने चौक पर शाम की आरती खत्म हो चुकी थी। हवा में अब भी अगरबत्ती की खुशबू लेकिन अनन्या के दिल में डर और सवालों का तूफान मचा था। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही मंजर घूम जाता – उसकी माँ सरोज का खून से लथपथ चेहरा और माथे पर लगा हुआ वो खून का टीका।उस रात के बाद से अनन्या की जिंदगी बदल गई थी। लोग कहते थे कि हवेली में आत्मा भटकती है, लेकिन अनन्या को लगता था कि ये सब किसी इंसान का खेल है। उसकी माँ की मौत एक हादसा नहीं, बल्कि किसी ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 3
रात का अँधेरा और हवेली में गूँजती गोली की आवाज़ – सब कुछ एक पल में थम गया। धुआँ ही अनन्या ने देखा – उसके पिता राघव जमीन पर पड़े थे, लेकिन उनकी साँसें अब भी चल रही थीं।पुलिस दौड़कर उनके पास पहुँची, हथकड़ी लगाई और उन्हें उठाने लगी। लेकिन अनन्या का ध्यान अब भी एक सवाल पर अटका था – पुलिस को यहाँ बुलाया किसने?---रहस्यमयी मददगारअनन्या ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। हवेली का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला और अंदर आया – विक्रम, अनन्या का मंगेतर।"अनन्या, मैं समय पर पहुँच गया। मैंने ही पुलिस को खबर दी थी," विक्रम ने ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 4
कमरा अचानक अंधेरे में डूब गया। दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया और बाहर से ताले की आवाज़ आई। ने घबराकर विक्रम का हाथ पकड़ा।"ये क्या हो रहा है विक्रम? कोई हमें यहाँ बंद कर रहा है!"विक्रम ने दीवार पर हाथ फेरते हुए कहा –"यह हवेली सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं है अनन्या… यह जिंदा है। यहाँ हर कोना, हर दीवार हमें देख रही है।"अनन्या काँप गई। तभी कमरे के कोने में रखा पुराना आईना चमकने लगा। आईने में धुंधली-सी परछाई उभर आई – सरोज की।"माँ…!" अनन्या चीख पड़ी।---सरोज की चेतावनीआईने के भीतर से धीमी, दर्दभरी आवाज़ आई –"अनन्या… भागो यहाँ ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 5
पार्ट 5 – हवेली के साएअवनि कमरे के बीचोंबीच खड़ी थी। हवा अचानक ठंडी हो गई थी, जैसे किसी खिड़की से बर्फीली सांसें अंदर भेज दी हों। टॉर्च की रोशनी काँप रही थी, और सामने रखे चाँदी के संदूक से हल्की-सी लाल रोशनी फूट रही थी।पीछे से आवाज़ आई –"तुम्हें ये सब नहीं देखना चाहिए था।"अवनि पलटी, उसकी माँ दरवाज़े पर खड़ी थीं। चेहरा पीला, आँखों में डर और हाथ काँपते हुए।“माँ… ये क्या है? ये चुनरी… ये कटे हुए हाथ का क्या मतलब है?”माँ ने कुछ नहीं कहा, बस धीमे-धीमे कमरे में आईं और संदूक का ढक्कन बंद ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 6
पार्ट 6पिछले भाग में:आरव की रहस्यमयी मौत के बाद अवनि को उसके कमरे में कुछ अजीब घटनाएँ महसूस होने — अचानक दरवाज़ा अपने आप बंद होना, खिलौनों का हिलना, और दीवार पर खून से लिखी एक चेतावनी —> "मैं गया नहीं हूँ…"---अवनि ने उस खून से लिखे शब्दों को देखकर अपनी आँखें मसल डालीं।"नहीं… ये मेरा वहम है…"उसने खुद से कहा, लेकिन दिल की धड़कनें अब भी दौड़ रही थीं जैसे किसी ने सच में छू लिया हो।वो तुरंत कमरे से बाहर निकली और दौड़कर माँ के पास पहुंची। माँ पूजा के सामने बैठी रो रही थी, हाथ में ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 7
पार्ट 7 – चौथा साया(“तुम… तुम तो पापा के…!”)अवनि की चीख पूरे कमरे में गूंज गई। सामने खड़ा आदमी पूरी रोशनी में था — चुभती आँखें, झुका हुआ चेहरा और माथे पर हल्का सा टीके का निशान।अवनि के मुँह से धीरे से निकला —"ये… ये तो पापा के जुड़वा भाई हैं!"माँ काँप उठीं। "नहीं... नहीं अवनि… इसे मत पहचानो। ये वही है जो तुम्हारे पापा के पीछे पूरी ज़िंदगी पड़ा रहा।"आदमी धीरे-धीरे आगे बढ़ा और खंजर को ज़मीन पर रख दिया। उसकी आवाज़ एकदम शांत, लेकिन अंदर से ज़हर भरी थी –“इतने सालों बाद आज फिर वही हवेली… वही ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 8
पार्ट 8पिछले भाग में आपने पढ़ा:> अवनि ने माँ से सवाल किया — "क्या मेरा कोई और भाई भी का चेहरा ज़मीन में गड़ गया… और वो बस यही बोली, "हां था… लेकिन वो अब नहीं है।"फिर उसने कहा, "तेरे पापा ने उसे मार डाला… और… मैंने सब छुपाया।"---अब आगे…अवनि जैसे ही तहखाने में उतरी, एक सड़ी-गली गंध ने उसका दम घोंटना शुरू कर दिया। दीवारों पर मकड़ियों के जाले थे, लेकिन बीच में रखी वो लोहे की संदूक… जैसे उसकी ओर बुला रही हो।उसने कांपते हाथों से संदूक खोली।उसमें एक पुरानी डायरी थी। पहले पन्ने पर लिखा था:> ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 9
पार्ट 9रात के सन्नाटे में हवेली के पुराने हिस्से से फिर वही अजीब सी खटखटाहट आने लगी। बारिश रुक थी, लेकिन हवा में अब भी नमी और डर की गंध तैर रही थी।रश्मि ने अपने कमरे की खिड़की से झाँका— आँगन के कोने में कोई परछाईं झुककर कुछ खोद रही थी। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।"ये कौन हो सकता है इतनी रात में?" उसने खुद से कहा।दिल में डर और जिज्ञासा एक साथ उमड़ पड़ी। उसने टॉर्च उठाई और धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला। सीढ़ियों पर कदम रखते ही लकड़ी चरमराई। रश्मि ठिठक गई, कहीं आवाज़ सुनकर वो ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 10
पार्ट 10रात गहरी हो चुकी थी। हवाओं में अजीब सी सर्दी थी, जबकि मौसम में ठंड का नाम तक था। नंदिनी अपने कमरे में बार-बार करवट बदल रही थी। दिन भर के हादसों ने उसके मन को झकझोर दिया था—वो खून, वो टीका, और वह अजनबी औरत जो अचानक मंदिर के पिछवाड़े मिली थी।अचानक, खिड़की पर टक-टक की आवाज हुई। नंदिनी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वह धीरे से उठी और परदे के पीछे से झाँका—बाहर अंधेरे में एक परछाईं खड़ी थी। उसकी आकृति धुंधली थी, पर हाथ में कुछ चमक रहा था… शायद एक चाकू!"क…कौन?" नंदिनी की ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 11
तहखाने का भारी दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुला। जैसे ही चिराग और राधिका अंदर कदम रखते हैं, घुप्प अंधेरा चारों ओर छा जाता है। टॉर्च की हल्की-सी किरण दीवारों पर पड़ते ही जाले हिलने लगे। हवा इतनी ठंडी थी कि साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।अचानक टॉर्च की रौशनी में एक आकृति उभरती है।वो थी — नंदिनी।उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूखे हुए और आँखों में खून उतर आया था। लेकिन सबसे डरावनी बात थी उसके माथे पर चमकता हुआ खून का टीका।राधिका के मुँह से चीख निकल गई—“नंदिनी… तुम तो… तुम तो मर गई थीं!”नंदिनी ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 12
हवेली के बाहर तूफ़ान ज़ोरों पर था। बिजली की गड़गड़ाहट से खिड़कियाँ हिल रही थीं और भीतर का माहौल श्मशान से कम नहीं लग रहा था। तहखाने की उस गुप्त सुरंग से निकलते ही चिराग और राधिका ने खुद को एक बड़े कक्ष में पाया।कक्ष की दीवारों पर लाल रंग से बने हुए प्राचीन चिन्ह चमक रहे थे। बीच में चौकी पर रखा था—खून से सना हुआ टीका।जैसे ही राधिका की नज़र उस टीके पर पड़ी, उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।“चिराग… मुझे लग रहा है ये मुझे ही पुकार रहा है।”चिराग ने उसका हाथ पकड़ लिया—“नहीं राधिका! ये ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 13
रात का सन्नाटा अब और भी गहरा हो चुका था। हवाएँ तेज़ चल रही थीं, खिड़कियों से टकराकर अजीब सीटी जैसी आवाज़ निकाल रही थीं। नंदिनी अपने कमरे में बैठी बार-बार उस खून से सने टीके को याद कर रही थी जो उसने मंदिर में देखा था। उसका मन बार-बार यह सोचकर सिहर उठता कि आखिर ये सब कौन कर रहा है और क्यों?उसकी आँखों के सामने बार-बार वही दृश्य कौंध जाता – लाल खून, पवित्र जगह पर लगा टीका और उस पर लिखे रहस्यमयी शब्द। नंदिनी का मन डर और बेचैनी से भर गया। वह सोच रही थी ...और पढ़े
खून का टीका - भाग 14
सीढ़ियों के नीचे पड़े लाल कपड़े में लिपटे शव को देखते ही नंदिनी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। होंठ कांपने लगे, आँखों में डर साफ़ झलक रहा था।“हे भगवान… ये कौन हो सकता है?”उसका मन मानो जवाब चाहता था लेकिन शरीर में इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि आगे बढ़कर कपड़ा उठाए। हवा और तेज़ बह रही थी, खिड़कियाँ बार-बार धमाके से बंद हो रही थीं, जैसे पूरा घर इस राज़ को छुपाना चाहता हो।लेकिन नंदिनी जानती थी कि अब पीछे हटना संभव नहीं। उसने काँपते हाथों से धीरे-धीरे शव के ऊपर से लाल कपड़ा उठाया।जैसे ही चेहरा ...और पढ़े