इंद्रधनुष उतर आया......

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फूलों को अपने होने पर गर्व था, यह जानते हुए भी शाम तक या एक-दो दिन में उन्हें मुरझा ही जाना है। 'फिर भी खिलना, मस्ती से झूमना नहीं छोड़ते,' हौले से हवा के झोंके की तरह एक आवाज ने उसके कानों को छुआ। वह सिहर उठी। ऐसा तो अब अक्सर ही होता है। और उसके बाद राम्या की आंखें नम हो जाती हैं। उसका किसी के कंधे पर सिर रखकर रोने का मन करता है, वह भी चीख-चीखकर। राम्या ने बहते आंसुओं को रोकने के प्रयत्न में कुछ पल के लिए अपनी मुट्ठियां भींच लीं। धीमा-धीमा शोर उठा। उसने देखा कुछ बच्चे पिचकारी लिए पार्क में आ गए थे। पीछे से कुछ स्वर भी गूंजे, "अभी पानी से मत खेलना। दोपहर बाद होली खेलना। ठंड है।" अचानक राम्या को भी ठंड का एहसास हुआ। उसने कसकर शॉल लपेट ली। मार्च खत्म हो रहा है, पर सुबह-शाम की ठंड बाकी है।

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छत पर उदास सी अपने में खोई खड़ी थी राम्या। शायदअपने को खो देने की कोशिश में बस यूं खड़ी थी।सामने पार्क में रंग-बिरंगे फूल लहरा रहे थे। एक तोवसंत ऋतु, दूसरे उन फूलों की साज-सज्जा पार्क कोसंभालने वाले प्राधिकरण ने बहुत ही कलात्मक ढंगसे की थी। किसी कलाकार की कूची ने जैसे उन्हें हरओर छिटका दिया हो। बहुत ही करीने से उन फूलों काआकार दिया गया था। किसी हिस्से में सफेद फूलों केबड़े-बड़े गुच्छों को गोलाकार आकार देते हुए एक साथदस विशाल गुच्छे सजे थे तो कहीं सूरजमुखी की कतारेंथीं। लाल, पीला, बैंगनी, गुलाबी, नारंगी, नीला... किसरंग के ...और पढ़े

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