सदफ़िया मंज़िल का दरवाज़ा खुला हुआ है। वह भी सदफ़िया की तरह बहुत बूढ़ा हो चुका है। जगह-जगह से चिटक गया है। यह चिटकन और बढ़ कर दरवाज़े को ज़मीन न सुँघा दे, इस लिए जगह-जगह टीन की पट्टियों को कीलों से जड़ा गया है। ये टीन की पट्टियाँ भी जंग (मुर्चा) खा-खा कर कमज़ोर पड़ती जा रही हैं। सदफ़िया दरवाज़े की चिटकन को टीन, कीलों के ज़रिए जितना रोकने की कोशिश कर रही है, वह उसके शरीर की झुर्रियों की तरह उतनी ही बढ़ती जा रही है। सदफ़िया जब-जब उसे ग़ौर से देखती है तो ऐसा लगता है, जैसे अपनी जवानी की तरह उसकी भी जवानी याद कर रही है। जब अपनी मज़बूती से वह इस्पाती होने का एहसास देता था। उस वक़्त वह बड़ी अकड़ से कहती थी कि, “पक्की साखू का बना है। सौ साल तक हिलने वाला नहीं।”

Full Novel

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सदफ़िया मंज़िल - भाग 1

भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव सदफ़िया मंज़िल का दरवाज़ा खुला हुआ है। वह भी सदफ़िया की तरह बहुत बूढ़ा हो है। जगह-जगह से चिटक गया है। यह चिटकन और बढ़ कर दरवाज़े को ज़मीन न सुँघा दे, इस लिए जगह-जगह टीन की पट्टियों को कीलों से जड़ा गया है। ये टीन की पट्टियाँ भी जंग (मुर्चा) खा-खा कर कमज़ोर पड़ती जा रही हैं। सदफ़िया दरवाज़े की चिटकन को टीन, कीलों के ज़रिए जितना रोकने की कोशिश कर रही है, वह उसके शरीर की झुर्रियों की तरह उतनी ही बढ़ती जा रही है। सदफ़िया जब-जब उसे ग़ौर से देखती है तो ...और पढ़े

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सदफ़िया मंज़िल - भाग 2

भाग -2 रफ़िया की बात पूरी होते ही हँसली ने कहा, “चल चुप कर, भूख से मरेंगे। देख हम भूख से तो नहीं मरेंगे ये पक्का मान, बाक़ी चाहे जिससे मरें। समाचार में कई दिन से बोला जा रहा है कि अब की अनाज पीछे के सारे रिकॉर्ड तोड़ कर उससे भी ज़्यादा पैदा हुआ है। गवर्नमेंट सबको राशन दे भी रही है, वह भी एकदम मुफ़्त। और बताऊँ, जब-तक शाखा बाबू जैसे लोग दुनिया में हैं, तब-तक तो कोई खाने बिना तो नहीं ही मरेगा।” हँसली की बात से रफ़िया को जैसे कुछ याद आ गया। उसने तुरंत ...और पढ़े

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सदफ़िया मंज़िल - भाग 3

भाग -3 हँसली ने यह कहते हुए दूर से ही ज़किया की बलाएँ लेते हुए अपने दोनों हाथों की को कानों के पास ले जाकर हल्के से दबा दिया। जिससे एक साथ कई पट्ट-पट्ट आवाज़ हुई। तभी रफ़िया कुछ सोचती हुई बोली, “मसालेदार क्या, आदमी ख़ाली बैठा रहेगा तो दुनिया भर की बातें तो ज़ेहन में घूमेंगी ही, जब-तक कस्टमर आ रहे थे, तब-तक सब पर यहाँ बैठी निगाह रखती रहीं। मगर अब कुछ नहीं तो जब देखो तब, कोरोना, स्पेनिस फ़्लू, प्लेग, यह, वह। और एक यह है, जबसे हर तरफ़ कोरोना-कोरोना हुआ है, मोबाइल में देख-देख कर ...और पढ़े

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सदफ़िया मंज़िल - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग -4 “इसी बीच एक दिन, एक दल्ला, एक ग्राहक रणजीत बख्स सिंह को लेकर इनके पास आया। यह भी उसका नाम भूली नहीं हैं। ज़हूरन के जाने के बाद से ही इन्होंने किसी ग्राहक के साथ सोना बंद कर दिया था। कोठे की मालकिन होने के नाते भी किसी ग्राहक के साथ सोती नहीं थीं। जबकि किसी भी कोठे की सबसे कम उम्र की मालकिन थीं। “शबाब में कोठे की सारी लड़कियाँ इनके सामने कहीं ठहरती ही नहीं थीं। रणजीत बख्स बजाय किसी और लड़की के इन्हीं पर फ़िदा हो गया। सेना का अधिकारी था। विश्व-युद्ध में न ...और पढ़े

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