सकीना यह समझते ही पसीना-पसीना हो गई कि वह काफ़िरों के वृद्धाश्रम जैसी किसी जगह पर है। ओम जय जगदीश हरे . . . आरती की आवाज़ उसके कानों में पड़ रही थी। उसने अपने दोनों हाथ उठाए कानों को बंद करने के लिए लेकिन फिर ठहर गई। वह समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर वो यहाँ कैसे आ गई। उसकी नज़र सामने दीवार पर लगी घड़ी पर गई, जिसमें सात बज रहे थे। खिड़कियों और रोशनदानों से आती रोशनी से वह समझ गई कि सुबह के सात बज रहे हैं। वह बड़े अचरज से उस बड़े से हॉल में दूर-दूर तक पड़े बिस्तरों को देख रही थी जो ख़ाली थे, जिनके बिस्तर बहुत क़रीने से मोड़ कर रखे हुए थे। मतलब वहाँ सोने वाले सभी उठ कर जा चुके थे। इसी बीच आरती पूर्ण होने के बाद समवेत स्वरों में, “ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशीभूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥ श्लोक बोला जा रहा था। उसके हाथ एक बार फिर अपने कानों को बंद करने के लिए उठे, लेकिन बीच में ही फिर ठहर गए। वह बड़ी उलझन में पड़ गई कि कैसे यहाँ पहुँच गई। उसे कुछ-कुछ याद आ रहा था कि वह तो अपने सबसे छोटे बेटे जुनैद के साथ डॉक्टर के यहाँ दवा लेने के लिए निकली थी और उस समय शाम भी ठीक से नहीं हो पाई थी।

Full Novel

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दो बूँद आँसू - भाग 1

भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव सकीना यह समझते ही पसीना-पसीना हो गई कि वह काफ़िरों के वृद्धाश्रम जैसी किसी जगह है। ओम जय जगदीश हरे . . . आरती की आवाज़ उसके कानों में पड़ रही थी। उसने अपने दोनों हाथ उठाए कानों को बंद करने के लिए लेकिन फिर ठहर गई। वह समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर वो यहाँ कैसे आ गई। उसकी नज़र सामने दीवार पर लगी घड़ी पर गई, जिसमें सात बज रहे थे। खिड़कियों और रोशनदानों से आती रोशनी से वह समझ गई कि सुबह के सात बज रहे हैं। वह बड़े अचरज से ...और पढ़े

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दो बूँद आँसू - भाग 2

भाग -2 सकीना के दिमाग़ में एक बार यह बात भी आई कि गाड़ी से चला था, कहीं रास्ते कोई अनहोनी तो नहीं हुई, किसी ने उसे नुक़्सान पहुँचाया और मुझे यहाँ लाकर फेंक दिया। फिर सोचा कि नहीं, ऐसा कैसे होगा, कोई अगर उसे नुक़्सान पहुँचाता, तो मुझे भी पहुँचाता, मुझे इतनी दूर लाकर फेंकने की ज़हमत क्यों उठाता। कोई अनहोनी होती तो चोट-चपेट मुझे भी तो आती न। वह यह सोचकर ही फफक कर रो पड़ी कि उसके शौहर का बनवाया उसका इतना बड़ा घर, लेकिन बाहर सड़क पर किसी ने उसे ग़रीब भिखारी आदि समझकर दया ...और पढ़े

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दो बूँद आँसू - भाग 3

भाग -3 वह यह भी कह रही थीं कि “जब भगवान राम लंका विजय कर वापस आए तो उनके भरत जो चौदह वर्षों तक राज सिंहासन पर बड़े भाई राम की खड़ाऊँ रखकर राजकाज चलाते रहे, उन्होंने अतिशय प्रेम सम्मान के साथ बड़े भाई को सिंहासन पर बिठाया। “ऐसी श्रेष्ठ सनातन संस्कृति है हमारी। हमारी संस्कृति में ऐसा नहीं हुआ कि राज-सत्ता के लिए पिता-पुत्र, भाइयों के मध्य युद्ध होते रहें, एक-दूसरे का शिरोच्छेद करते रहें, बड़े भाई का सिर काट कर थाल में सजा कर पिता के पास भेजते रहें। “लुटेरे आक्रान्ता मुग़लों के यहाँ तो यह सबसे ...और पढ़े

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दो बूँद आँसू - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग -4 क्या उन्हें यह बताऊँगी कि शौहर ने अपनी जिन कमज़र्फ़ औलादों को मज़हबी तालीम देने के लिए, जिस सबसे क़रीबी हाफ़िज़ को लगाया था, उसकी पहले दिन से ही मुझ पर ग़लत नज़र थी। मुक़द्दर ने भी उसी का साथ दिया और दूसरे महीने में ही शौहर किसी लड़की को बेचने के इल्ज़ाम में जेल चले गए। वह उन्हें छुड़ाने का झाँसा देकर मेरी अस्मत लूटने लगा। कुछ महीने बाद वह ज़मानत पर छूट कर आ गए, लेकिन उसके बाद भी अस्मत लूटते हुए मेरी जो बहुत सी वीडियो बना ली थी, मुझे वही दिखा-दिखा कर डराता ...और पढ़े

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