गुरुकुल का दृश्य : (संध्या का समय) दो विद्यार्थी कृपाल व विभु दाईं ओर से किसी विषय पर चर्चा करते हुए आ रहे है। और उनमें से कृपालके हाथ में एक पुस्तक है। कृपाल : देखो मित्र! ( आश्चर्य व गर्व के मिले-जुले भाव के साथ) कैसा महान व्यक्तित्व रहा होगा इनका। कैसे इन्होंने पतन की निचली गहराइयों से उठकर उत्थान की गगनचुंबी ऊंचाइयों को छुआ होगा। ( विभु पुस्तक के पाठ को देखने लगता है) ऐसे व्यक्ति का जीवन चरित्र कितना लोमहर्षक और प्रेरणादायी हो सकता है, नहीं–नहीं यह कल्पना का विषय नहीं है, बल्कि निखुट सत्य है
Full Novel
मुन्शीराम बना श्रद्धानंद - भाग 1
मैं श्रद्धानंद कैसे बना?गुरुकुल का दृश्य : (संध्या का समय) दो विद्यार्थी कृपाल व विभु दाईं ओर से किसी पर चर्चा करते हुए आ रहे है। और उनमें से कृपालके हाथ में एक पुस्तक है। कृपाल : देखो मित्र! ( आश्चर्य व गर्व के मिले-जुले भाव के साथ) कैसा महान व्यक्तित्व रहा होगा इनका। कैसे इन्होंने पतन की निचली गहराइयों से उठकर उत्थान की गगनचुंबी ऊंचाइयों को छुआ होगा। ( विभु पुस्तक के पाठ को देखने लगता है) ऐसे व्यक्ति का जीवन चरित्र कितना लोमहर्षक और प्रेरणादायी हो सकता है, नहीं–नहीं यह कल्पना का विषय नहीं ...और पढ़े
मुन्शीराम बना श्रद्धानंद - भाग 2
हम भले ही रुक जाये परन्तु समय , समय तो अपनी निश्चित गति से विचरण कर रहा है बिना बिना रुके। । । पर्दा उठता है ।।धीरे–धीरे मंच पर प्रकाश होता है। किशोर मुंशीराम और नानकचन्द जी बाईं ओर से प्रवेश करते हैं। दोनों ही घर में रखी वस्तुओं को कभी उधर रख रहे हैं, कभी इधर। नानकचंद जी एक कोने में चादर बिछाकर उस पर कुछ खाने–पीने की सामग्री लाकर रख देते हैं तथा फिर अन्य कार्यों में जुट जाते हैं। वृद्ध संन्यासी/गुरुजी : (पर्दे के पीछे से) हम भले ही रुक जाए परंतु समय, समय तो अपनी ...और पढ़े