कैसे भूल सकता हूँ ,उन दिनों को भूलना चाहूं, तो भी नही।ऐसे दिन भगवान किसी भी बाप को न दिखाए। और माफ भी नही कर सकता उन लोगों को जो आदमी को कर्ज के जाल में फसाते है।सुना है कि हमारे भारत मे ही एक बार सूदखोर यानी साहूकार से कर्ज ले लिया तो पीढियां बीत जाती थी।ब्याज देते देते लेकिन मूलधन नही चुकता था।आज भी मिलती जुलती ही स्थिति है।बदले रूप में पहले गांवों में सेठ,साहूकार व इसी तरह के और लोग होते थे।जो गरीबो या जरूरतमंदों को उधार पैसा देते थे।और ये पैसे कभी भी नही चूकते थे।चुकाने के बावजूद कर्जा बढ़ता जाता था।और पीढ़ी दर पीढ़ी यह कर्ज चलता रहता था।और कर्ज न चुका पाने पर जबरदस्ती बंधक बनाकर बंधवा मजदूर बना लेते थे।पहले शहर आजकल की तरह नही होते थे।

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39 Days - 1

कैसे भूल सकता हूँ ,उन दिनों को भूलना चाहूं, तो भी नही।ऐसे दिन भगवान किसी भी बाप को न माफ भी नही कर सकता उन लोगों को जो आदमी को कर्ज के जाल में फसाते है।सुना है कि हमारे भारत मे ही एक बार सूदखोर यानी साहूकार से कर्ज ले लिया तो पीढियां बीत जाती थी।ब्याज देते देते लेकिन मूलधन नही चुकता था।आज भी मिलती जुलती ही स्थिति है।बदले रूप में पहले गांवों में सेठ,साहूकार व इसी तरह के और लोग होते थे।जो गरीबो या जरूरतमंदों को उधार पैसा देते थे।और ये पैसे कभी भी नही चूकते थे।चुकाने के ...और पढ़े

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39 Days - 2

किराए की दुकान पर बहुत लोगो से सम्पर्क और दोस्ती हो गयी थी।2015 में प्लाट पर दुकान बनवा ली दुकान मालिक भी दुकान खाली करने के लिए कह रहा था।और आखिर में दुकान बन गयी।नई दुकान और नोट बंदी के बाद समय चक्र पलटा।दुकान की बगल में दुकान का प्लाट खाली था।बेटे ने दुकान में बेसमेंट बनवाया था।जिसमे लाखो का सामान भरा था।2016 में बगल वाले ने दुकान की नींव खुदवाई और उसी रात भयंकर बरसात आ गयी।इतनी बरसात की नींव में से बेसमेंट में पानी आया और पूरा बेसमेंट पानी से भर गया।मैं पत्नी के साथ बाहर गया ...और पढ़े

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39 Days - 3

और 2019 का दिसम्बरइस साल में मेरी माँ का देहांत हो गया।बेटे की तबियत बहुत अच्छी नही चल रही बीच मे दो बार उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।और इधर आर्थिक संकट31 दिसम्बर को मैने गुस्से में बेटे से न जाने क्या कह दिया।उस समय दो दुकानें थी।एक किराए की दूसरी अपनी।मैने भी दुकान पर बैठना शुरू कर दिया।लोग अकेला देखकर बेटे को तंग न करे इसलिए उसके साथ उसकी पत्नी को भी बैठता था।लोग धमकियां दे रहे थे।डर यह लगा रहता कही लोग पोतों के साथ कुछ गड़बड़ न कर दे।इसकी आसंका हमे थी और ssp को शिकायत ...और पढ़े

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