पाप या पुण्य, जीवन में किये गए किसी भी कार्य का फल माना जाता है। इस पुस्तक में दादाश्री हमें बहुत ही गहराई से इन दोनों का मतलब समझाते हुए यह बताते है कि, कोई भी काम जिससे दूसरों को आनंद मिले और उनका भला हो, उससे पुण्य बंधता है और जिससे किसी को तकलीफ हो उससे पाप बंधता है। हमारे देश में बच्चा छोटा होता है तभी से माता-पिता उसे पाप और पुण्य का भेद समझाने में जुट जाते है पर क्या वह खुद पाप-पुण्य से संबंधित सवालों के जवाब जानते है? आमतौर पर खड़े होने वाले प्रश्न जैसे– पाप और पुण्य का बंधन कैसे होता है? इसका फल क्या होता है? क्या इसमें से कभी भी मुक्ति मिल सकती है? यह मोक्ष के लिए हमें किस प्रकार बाधारूप हो सकता है? पाप बांधने से कैसे बचे और पुण्य किस तरह से बांधे? इत्यादि सवालों के जवाब हमें इस पुस्तक में मिलते है। इसके अलावा, दादाजी हमें प्रतिक्रमण द्वारा पाप बंधनों में से मुक्त होने का रास्ता भी बताते है। अगर हम अपनी भूलो का प्रतिक्रमण या पश्चाताप करते है, तो हम इससे छूट सकते है। अपनी पाप-पुण्य से संबंधित गलत मान्यताओं को दूर करने और आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति करने हेतु, इस किताब को ज़रूर पढ़े और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़े
Full Novel
पाप-पुण्य - 1
पुण्य पाप की इतनी सारी बातें सुनने को मिलती हैं कि इनमें सच क्या है ? वह समाधान कहाँ मिलेगा ? पाप-पुण्य की यथार्थ समझ के अभाव में कई उलझनें खड़ी हो जाती हैं। पुण्य और पाप की परिभाषा कहीं भी क्लियरकट और शॉर्टकट (और संक्षेप में) में देखने को नहीं मिलती। इसलिए पुण्य पाप के लिए तरह-तरह की परिभाषाएँ सामान्य मनुष्य को उलझाती हैं, और अंत में पुण्य बांधना और पाप करने से रुकना तो होता ही नहीं। परम पूज्य दादाश्री ने वह परिभाषा बहुत ही सरल, सीधी और सुंदर ढंग से दे दी है कि दूसरों को सुख देने से पुण्य.. ...और पढ़े
पाप-पुण्य - 2
पाप-पुण्य की न मिले कहीं भी ऐसी परिभाषाप्रश्नकर्ता : पाप और पुण्य, वे भला क्या हैं?दादाश्री : पाप और का अर्थ क्या है? क्या करें तो पुण्य होगा? पुण्य-पाप का उत्पादन कहाँ से होता है? तब कहें, ‘यह जगत् जैसा है वैसा जाना नहीं है लोगों ने, इसलिए खुद को जैसा ठीक लगे वैसा बरतते हैं। अर्थात् किसी जीव को मारते हैं, किसी को दु:ख देते हैं, किसी को त्रास पहुँचाते हैं।’किसी भी जीव मात्र को कोई भी त्रास पहुँचाना या दु:ख देना, उससे पाप बँधता है। क्योंकि गॉड इज़ इन एवरी क्रीचर वेदर विज़िबल औैर इन्विज़िबल। (आँख से ...और पढ़े