मेरे अजनबी हमसफ़र

(2)
  • 10.4k
  • 0
  • 5.3k

पूरा पढ़ना न भूलें :- यह एक काल्पनिक कहानी है इसका वास्तविक जीवन से कोई वास्ता नहीं। वह ट्रेन के आरक्षण की बोगी में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी... उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो.. कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही। शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी। देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था। मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा... फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया...लगभग 1 घंटे के बाद टीटी आया और उसे हिलाकर उठाया। “कहाँ जाना है बेटा” “अंकल दिल्ली तक जाना है” “टिकट है ?” “नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी” “अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा” “ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”“ये तो गलत बात है बेटा …..पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी” “सॉरी अंकल …. मैं अगले स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं ….

1

मेरे अजनबी हमसफ़र - भाग 1

मेरे अजनबी हमसफ़र (भाग-1) पूरा पढ़ना न भूलें :- यह एक काल्पनिक कहानी है इसका वास्तविक जीवन से कोई नहीं।वह ट्रेन के आरक्षण की बोगी में बाथरूम के तरफ वाली सीट पर बैठी थी... उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी ने आकर पकड़ लिया तो..कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही। शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी। देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें ...और पढ़े

2

मेरे अजनबी हमसफ़र - भाग 2

मेरे अजनबी हमसफ़र (भाग-2) जिंदगी की राह में सिलसिले कुछ अजीब रहे ,अनजान रास्ते ,अनजाने से मोड़, अजनबी हमसफ़र, सी दौड़, अनकहे रिश्ते, अनकही सी होड़, सफर तो फर्ज़ के दरवाजे पे जाके सुलझा है ,अजनबी हमसफ़र का हर अल्फ उलझा है , उसने अपना पता लिखा वह पता मेरे शहर से तीन सौ किलोमीटर के फासले पर था । मैं रात भर सोचता रहा कि सुबह तो उनके पास जाना ही है चाहे तूफान क्यों ना आ जाये ,मन मे अजनबी सफर से मिलने की लालसा रात भर जगी रही कि रात के दो बज गए, सोचते सोचते ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प