उपन्यास अंश; सुधा का स्वर फिर तेज़ हुआ तो माँझी पुन: अनुत्तरित हो गया । तब सुधा ने आगे कहा, " यदि आप मेरी जीवन रक्षा करने का सिला या प्रतिफल ही चाहते हैं, तो मैंने भी आपकी इसी कारण यहाँ मक्रील नदी के किनारे बुलाया भी है । याद है आपको, अब से कई माह पूर्व आपने इसी मक्रील के गर्भ से मुझे निकालकर एक नया जीवनदान दिया था । आपको अपने इस उपकार के बदले में क्या चाहिए ? मैं ? मैं तो नहीं मिल सकती आपको । पर हाँ, अगर आप मुझे एक नई जिन्दगी देने के पश्चात् अपनी कोई धरोहर समझने लगे हैं तो दोबारा फेंक दीजिए मुझे इसी मक्रील की लहरों के बीच में, जहाँ से निकालकर कभी आपने मुझे बचाया था । कम-से-कम आपका सिला तो आपको मिल ही जाएगा। मुझे नहीं चाहिए ऐसा उधार का जीवन, जिसके ऋण का तकाजा मुझसे सारी जिन्दगी भर होता रहे, और मैं एक पाई भी अदा न कर सकूँ । ” "सुधाजी ! खामोश हो जाइए प्लीज़ ! " माँझी से नहीं सुना गया तो वह एकाएक चीख-सा पड़ा । उसे लगा कि जैसे किसी ने उसके कानों में गर्म-गर्म लावा भर दिया हो । दिल के घावों पर गर्म-गर्म अँगारे रख दिए हों । सुधा ने अपने जोश में आकर जैसे उसके मुख पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए थे । बडी देर तक दोनों के मध्य खामोशी एक तीसरे वजूद के समान अपना स्थान बनाए रही । दोनों चुपचाप मक्रील नदी के जल की धाराओं को ताकते रहे । बिना किसी उद्देश्य के ... निरर्थक ही । दोषियों समान । एक-दूसरे के दोषों से परिचित होते हुए भी मौन रहने के अतिरिक्त उनके पास कोई दूसरा विकल्प था भी नहीं । . काफी देर के बाद सुधा ने ही मौन को तोड़ा । माँझी की ओर सहानुभूति और दयाभरी दृष्टि से देखते हुए वह शान्त स्वर में बोली,
Full Novel
नैया - भाग 1
नैया / सामाजिक उपन्यास/ शरोवन प्रथम भाग *** उपन्यास अंश; सुधा का स्वर फिर तेज़ हुआ तो माँझी पुन: हो गया । तब सुधा ने आगे कहा, " यदि आप मेरी जीवन रक्षा करने का सिला या प्रतिफल ही चाहते हैं, तो मैंने भी आपकी इसी कारण यहाँ मक्रील नदी के किनारे बुलाया भी है । याद है आपको, अब से कई माह पूर्व आपने इसी मक्रील के गर्भ से मुझे निकालकर एक नया जीवनदान दिया था । आपको अपने इस उपकार के बदले में क्या चाहिए ? मैं ? मैं तो नहीं मिल सकती आपको । पर हाँ, ...और पढ़े
नैया - भाग 2
नैया सामाजिक उपन्यास दूसरा भाग शरोवन तब दुलारे चाय का पानी रखने चला और सुधा पुन: अपने बालों को सुखाने लगी । दुलारे सुधा के घर का नौकर था और उम्र में वह उसके पिता से भी काफी बड़ा था । सुधा को उसने गोद में खिलाया था । वह एक लम्बे समय से सुधा के घर मेँ नौकरी कर रहा था । वह चाय बनाने में लीन था और सुधा अपने बालों को शीघ्र ही सुखा लेना चाहती थी । इसलिए उन्हें खुले छोडकर वह बाहर घर की गैलरी में आ गई । पर वहाँ से अपने पिता ...और पढ़े
नैया - भाग 3
नैया उपन्यास तीसरा भाग शरोवन द्वितीय परिच्छेद - माँझी का संसार गया... दिल की सारी हसरतों पर बिजली आग के समान चीख मारकर गिर पड़ी । उसके प्यार का हश्र इतना बुरा भी हो सकता है । ऐसा तो उसने कभी सोचा भी नहीं था । एक-न-एक दिन यह सब तो होना ही था, वह इतना तो समझता था-परन्तु यह सबकुछ इस तरह से होगा, ऐसा उसने कभी भी नहीं चाहा था । सुधा उसको इतनी कठोरता से लताड़ भी देगी, सबकुछ जानते, समझते हुए भी अनजान बनकर उसको अपने विषभरे शब्द भेंट में दे देगी ...और पढ़े
नैया - भाग 4 - अंतिम भाग
नैया सामाजिक उपन्यास चतुर्थ व अंतिम भाग शरोवन तृतीय परिच्छेद व अंतिम परिच्छेद माँझी की दर्दभरी दुर्घटना की खबर के मशहूर थिएटर 'नृत्य-संगीत निकेतन' में पलभर में ही जंगल में लगी आग के समान फैल गई । निकेतन की निदेशक श्रीमती राजभारती जिन्होंने माँझी को अपने यहाँ नौकरी दी थी, भी सुनकर आश्चर्य से दाँतों तले अँगुली दबा गईं । फिर क्या था कि तुरन्त ही निकेतन के हरेक कर्मचारी की आँखों में दर्द और विषाद के काले बादल मँडरा उठे । प्रत्येक के ओठों पर विभिन्न प्रकार की बातें थीं । इसके साथ ही माँ ...और पढ़े