दोपहर के दो बजे। तेज धूप और उमस भरी गर्मी। आग की भांति तपता दिल्ली रेलवे स्टेशन का वह प्लेटफॉर्म, जहाँ मुसाफिरो की निगाहें ट्रेन के इंतज़ार में सूने पडे ट्रैक पर टिकी थी। तभी पटरियों पर कम्पन के साथ हावडा जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर खडी हुई और यात्री अपने-अपने डिब्बे की तरफ बढने लगे। काफी देर से ट्रेन की बाट जोह रहा सत्तर साल का एक वृद्ध हाथ में संदूक लिए ट्रेन की तरफ बढता दिखा। अपने दूसरे हाथ से उसने बारह साल के एक बच्चे की उंगली थाम रखी थी और दोनों ट्रेन की तरफ बढने लगे। हर तरफ यात्रियों का कोलाहल और गर्मी की भारी तपिश के बावजूद भी उनदोनों के चेहरे शांत और निश्चल मालूम पड रहे थे। एक शयनयान डिब्बे में प्रवेश कर दोनो अपने सीट पर आ गये। खिडकी के बाजू में बैठ बच्चे की आंखें दूर किसी शून्य को निहारने लगी थी। वृद्ध ने हाथो में लिए संदूक को बडा सम्भालकर सीट के नीचे खिसकाया और उसके आगे अपने दोनों पैर टिकाकर ऐसे बैठ गया मानो संदूक के प्रहरी उसकी रखवाली में डंटे खडे हों। ट्रेन में सफर करने वाले मुसाफिरों का आना-जाना लगा हुआ था और एक-एक करके वे अपनी सीट पकडने लगे थे। समय होते ही कानफोडू हॉर्न के साथ ट्रेन गतिमान हुई और स्टेशन को अलविदा कर अपने गंतव्य की तरफ बढने लगी।

Full Novel

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मूलपूंजी - भाग एक

दोपहर के दो बजे। तेज धूप और उमस भरी गर्मी। आग की भांति तपता दिल्ली रेलवे स्टेशन का वह जहाँ मुसाफिरो की निगाहें ट्रेन के इंतज़ार में सूने पडे ट्रैक पर टिकी थी। तभी पटरियों पर कम्पन के साथ हावडा जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर खडी हुई और यात्री अपने-अपने डिब्बे की तरफ बढने लगे। काफी देर से ट्रेन की बाट जोह रहा सत्तर साल का एक वृद्ध हाथ में संदूक लिए ट्रेन की तरफ बढता दिखा। अपने दूसरे हाथ से उसने बारह साल के एक बच्चे की उंगली थाम रखी थी और दोनों ट्रेन की तरफ बढने ...और पढ़े

2

मूलपूंजी - भाग दो

...“टिकट दिखाइए? रो क्यूं रहे हैं? कोई परेशानी है तो मुझे बताएं?” – टीटीई ने सहानुभूति से कहा। पर के पचास बसंत देख चुके उन दम्पत्ति यात्री के आंसू न थमे। पहले तो लक्ष्मण को लगा कि बिना टिकट यात्रा करने और पकडे जाने की वजह से वे दोनों रो पडे। लेकिन जब उन्होने अपना टिकट निकालकर आगे बढाया तो रोने की असली वजह पल्ले नहीं पडी। लक्ष्मण ने भी फिर उन्हे ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा और उन्हे उनकी हाल पर छोड दूसरी तरफ मुड गया। उधर डिब्बे के दूसरे छोर पर यात्रा कर रहे वृद्ध प्रकाश लाल ...और पढ़े

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मूलपूंजी - भाग तीन

...सारी बातें सुन टीटीई लक्ष्मण ने अपने साथ खड़े जवानों को पूरे डिब्बे की छानबीन करने का आदेश दिया। पर बैठे प्रकाश लाल के आँसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उस बारह वर्षीय बच्चे रौशन को भी जैसे काठ मार गया था और उसकी सुर्ख आँखें उसके मन की हालत चीख-चीखकर बयां कर रही थी। सारे जवान तुरंत पूरे डिब्बे में फैल गए और हरेक यात्रियों के सामानों की तलाशी लेने लगे। खुद टीटीई लक्ष्मण भी प्रकाश लाल की कथित मूलपूंजी की सघन खोजबीन में जुटा था। आँसू बहाते प्रकाश लाल को उसके पड़ोसी ...और पढ़े

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मूलपूंजी - अंतिम भाग

...टीटीई ने पूरे फाइल को उलट-पलट कर देखा। वह ग्रामीण सच कह रहा था। उसकी बेटी को ब्रेन ट्यूमर जो कैंसर का शक्ल अख़्तियार कर चुका था और उसकी सर्जरी में लाखों रुपए खर्च होने वाले थे, जिसका एस्टिमेट डॉक्टर ने अपने प्रेसक्रिप्शन पर लिखकर दिया था। फाइल देखकर टीटीई ने ग्रामीण को वापस कर दिया। फिर एक जवान को सन्दूक की जांच करने के लिए कहा ताकि पता चल सके कि कहीं उसके साथ कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गई है। सन्दूक पर ताला जड़ा था और उसे तोड़ने की भी कोई कोशिश नहीं की गई थी। टीटीई ...और पढ़े

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