मैने अनुभव किया था कि बीहड़ में हम जिस भी गाँव के पास से निकलते हरेक ज्यादातर गांवों के बाहर एक चबूतरा जरूर बना होता । कृपाराम पूरी श्रद्धा से उस चबूतरे पर सिर जमीन पर रखकर प्रणाम करता । मुझ लगातार यह उत्सुकता रहने लगी कि इस जैसा हिंसक आदमी कौन से देवता को इतना मानता है, किसी दिन पूछेंगे । एक दिन मौका देख कर मैंने पूछा तो कृपाराम ने बताया-ये हम ग्वाल बालों के देवता हीरामन कारसदेव है । ’इनकी कथा हमने कहीं सुनी नहीं, दाऊ किसी दिन सुनाओ न !‘मेरी सहज उत्सुकता थी ।

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हीरामन कारसदेव - 1

हीरामन कारसदेव राजनारायण बोहरे लेखक के उपन्यास "मुखबिर " का अंश मैने अनुभव किया था कि बीहड़ में हम जिस भी गाँव के पास से निकलते हरेक ज्यादातर गांवों के बाहर एक चबूतरा जरूर बना होता । कृपाराम पूरी श्रद्धा से उस चबूतरे पर सिर जमीन पर रखकर प्रणाम करता । मुझ लगातार यह उत्सुकता रहने लगी कि इस जैसा हिंसक आदमी कौन से देवता को इतना मानता है, किसी दिन पूछेंगे । एक दिन मौका देख कर मैंने पूछा तो कृपाराम ने बताया-ये हम ग्वाल बालों के देवता हीरामन कारसदेव है । ’इनकी कथा ...और पढ़े

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हीरामन कारसदेव - 2

हीरामन कारसदेव २ लेखक के उपन्यास मुखबिर का अंश बोल रहे थे-ये बच्चा पुष्य नक्षत्र में जनमा है , असका पुण्य प्रताप पूरे जग मे फैलेगा , तुम्हारा बेटा अवतारी पुरूष है । इसका नाम कारसदेव प्रसिद्ध होगा । इसे हीरामन भी कहा जायेगा । ढोर-बछेरू के रोग बीमारी इसका नाम लेते ही दूर भाग जायेगी । राजू भैया, समझ लो तुम्हारे बुरे दिन बहुर गये, ये बेटा तुम्हारे सारे बैर बहोरेगा । जाओ खूब खुशी मनाओ । फिरक्या था, राजू के घर अल्ले पल्ले धर बरसा । वे फिर सेराजा हो गये । लुइहार राजा उनकी शरण ...और पढ़े

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