ये किसे ले आया अपने साथ?मास्टर किशनलाल ने अपने नौकर दीनू से पूछा। मालिक,हैजे से पत्नि चल बसी,ये अकेली जान कैसे रहता गांव में, कोई रिश्तेदार भी तो ऐसा भरोसेमंद नहीं है, जिसके पास इसे छोड़ देता,मेरा एक छोटा भाई है लेकिन उसकी पत्नी की वजह से उसकी चलती नही है, ये इसे पढ़ने का बहुत शौक़ है और होशियार भी है, मैंने सोचा आपकी छत्रछाया में रहेगा तो और होशियार हो जाएगा पढ़ने में, किशनलाल जी का नौकर दीनू बोला। मास्टर किशनलाल बोले,इधर आओ,क्या नाम है? तुम्हारा!! जी, मालिक, श्रीधर,उस सोलह साल के बच्चे ने जवाब दिया। बहुत अच्छी बात है,दीनू... अगर तुम्हारा बेटा पढ़ना चाहता है, जो मुझसे बन पड़ेगा, मैं करूंगा, इसके लिए, मास्टर किशनलाल बोले। आपकी बहुत बहुत कृपा,मालिक, आपका घर खुशियों से भरा रहें,आप सदा ऐसे ही मुस्कुराते रहे, दीनू बोला। तभी मास्टर जी की मुस्कान को नजर लग गई, उनकी दूसरी पत्नी सियादुलारी की कर्कश आवाज सुनाई पड़ी___ पता नहीं,एक काम ठीक से नहीं कर सकती, कुछ काम-काज ठीक से नहीं सीखेंगी तो ससुराल वाले कहेंगे कि, हां कुछ नहीं सिखाया मां ने सौतेली मां जो ठहरी।
Full Novel
संगम--भाग (१)
अरे,दीनू, ये किसे ले आया अपने साथ?मास्टर किशनलाल ने अपने नौकर दीनू से पूछा। मालिक,हैजे से पत्नि चल बसी,ये जान कैसे रहता गांव में, कोई रिश्तेदार भी तो ऐसा भरोसेमंद नहीं है, जिसके पास इसे छोड़ देता,मेरा एक छोटा भाई है लेकिन उसकी पत्नी की वजह से उसकी चलती नही है, ये इसे पढ़ने का बहुत शौक़ है और होशियार भी है, मैंने सोचा आपकी छत्रछाया में रहेगा तो और होशियार हो जाएगा पढ़ने में, किशनलाल जी का नौकर दीनू बोला। मास्टर किशनलाल बोले,इधर आओ,क्या नाम है? तुम्हारा!! जी, मालिक, श्रीधर,उस सोलह साल के बच्चे ने जवाब दिया। बहुत ...और पढ़े
संगम--भाग (२)
छोटा सा कस्बा है, रामपुर ! जहां मास्टर किशनलाल रहते हैं ,कस्बा छोटा जरूर है लेकिन स्कूल और कालेज सुविधा है वहां पर____ मास्टर किशनलाल का पूरा नाम किशनलाल उपाध्याय है, सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई तो सब लोग सम्मान में मास्टर जी कहने लगे, ऐसा नहीं है कि उन्हें रूपए-पैसे की दिक्कत है इसलिए सरकारी नौकरी कर रहे हैं,बस उन्हें बच्चों को पढ़ाने का बहुत शौक है,कस्बे से उनका गांव ज्यादा दूर नहीं है लेकिन मां-बाप की अकेली संतान थे और मां-बाप के जाने के बाद कौन से नाते-रिश्तेदार सगे होते हैं इसलिए गांव छोड़कर कस्बे में ...और पढ़े
संगम--भाग (३)
सुबह के समय___ प्रतिमा नाश्ता लेकर आई, बोली काका नाश्ता कर लो,आज चने की दाल की पूड़ी और लौकी रायता है साथ में लहसुन की चटनी भी है,रात में खाना तो कम नहीं पड़ा था। हां, थोड़ा बहुत लेकिन काम चल गया था, दीनू बोला। ऐ सुनो.... श्रीधर ने नहीं सुना___ प्रतिमा ने आवाज दी,ऐ तुम बहरे हो क्या? नहीं,मेरा नाम ऐ नहीं है,श्रीधर है,श्रीधर बोला। अच्छा जो भी तुम्हारा नाम है,तुम मेरे साथ घर के अंदर चलो और तुम खाना वहीं खा लिया करो, काका बेचारे भूखे रह जाते हैं,प्रतिमा बोली। श्रीधर खड़ा रहा___ अब चलो,मेरा मुंह क्या ...और पढ़े
संगम--भाग (४)
मास्टर किशनलाल जी के पुराने मित्र थे, सीताराम पाण्डेय वो एक बार मास्टर जी के घर आए, दोनों मित्र बाद मिले थे, किसी विवाह में अचानक ही मुलाकात हो गई दोनों की तो मास्टर जी ने अपने घर आमंत्रित कर लिया, उन्होंने प्रतिमा के हाथ का खाना खाया और देखा कि प्रतिमा घर के कामों में कितनी सुघड़ है और साथ में सुंदर भी है तो उन्होंने उसे अपने बड़े बेटे के लिए पसंद कर लिया। ये खबर मास्टर जी ने घर में सुनाई कि प्रतिमा को मेरे मित्र ने अपने बड़े बेटे के लिए पसंद कर लिया है__ ...और पढ़े
संगम--भाग (५)
मास्टर जी को पूरा भरोसा था कि श्रीधर चोरी जैसा तुच्छ कार्य नहीं कर सकता, उन्हें अपने बेटे आलोक संदेह हो रहा था और सियादुलारी भी समझ तो रही थी लेकिन खुलकर नहीं बोल पा रही थी शायद उसकी ममता आड़े आ रही थी। मास्टर जी ने पुलिस से कहकर बारीकी से फिर से सारी खोज-बीन करवाई,सारी जांच के बाद पता चला कि आलोक ही दोषी है,उसी ने गहने चुराये थे, कुछ गहनों से उसने कर्जा चुका दिया था और कुछ आगे के खर्चे के लिए बचाकर गौशाला में छुपा दिए थे, सोचा था बाद में जरूरत पड़ने पर ...और पढ़े
संगम--भाग (६)
घूंघट ओढ़े,लाल जोड़े में सजी दुल्हन,लाल चूड़ियों और सोने के कंगन से भरी कलाइयां, मेहंदी रची हथेलियां, बिछिया और के साथ ,महावर लगे सुंदर पैर___ दुल्हन ने द्वार पर प्रवेश किया, द्वार छिकाई के लिए दूल्हे की बहन को तलाशा जा रहा है___ तभी सीताराम पाण्डेय अपनी नेत्रहीन पत्नी पार्वती से कहा___ अजी सुनती हो,गुन्जा कहां है,जल्दी से द्वार छिकाई की रस्म पूरी कर दे,बहु भी थक गई होंगी ताकि अंदर आकर आराम कर सके। पार्वती बोली, अभी तो यही थी, पता नहीं कहां चली गई,ये लड़की भी ना, इतनी पागल है,जानती है कि भाभी आ गई है फिर ...और पढ़े
संगम--भाग (७)
इसी तरह समय बीतता जा रहा था____ एक दिन घर की सफाई करते हुए,प्रतिमा को एक पुरानी तस्वीर मिली, तुंरत गुन्जा से पूछा,इस तस्वीर में मां-बाबूजी है,तुम हो और तुम्हारे बड़े भइया लेकिन साथ में और कौन है? गुंजा बोली,ये छोटे भइया निरंजन है,सालों पहले किसी बात पर बाबूजी ने डांट दिया तो घर छोड़कर चले गए, तबसे वापस नहीं आए। तभी प्रतिमा बोली, हां याद आया,जब रिश्ते की बात आई थी तब पिता जी ने बताया था कि छोटा भाई घर छोड़ कर कहीं चला गया है, अच्छा तो ये बात है,तब से निरंजन का कुछ भी पता ...और पढ़े
संगम--भाग (८)
अब आलोक दुकान और घर ठीक से सम्भाल रहा था, कभी-कभी गांव भी चला जाता, खेती-बाड़ी देखने, मास्टर जी ये देखकर बहुत संतोष होता कि चलो अब बेटा अपनी जिम्मेदारी समझने लगा है,इन पांच साल में वो दो बच्चों का पिता भी बन गया था,अब मास्टर जी का घर-गृहस्थी में मन भी नहीं लगता था, प्रतिमा की वजह से उनका मन अब अशांत रहने लगा था,वो प्रतिमा को अपने पास भी नहीं बुला सकते थे क्योंकि प्रतिमा की उस घर को भी बहुत जरूरत थी। फिर एक दिन मास्टर जी, सियादुलारी से बोले___ अब यहां मन नहीं लगता, भाग्यवान! ...और पढ़े
संगम--भाग (९)
श्रीधर ने जैसे ही प्रतिमा को देखा और प्रतिमा ने श्रीधर को, पर दोनों ने एक-दूसरे को देखकर कोई नहीं दी,बस एक-दूसरे की आंखों में ही देखकर एक-दूसरे का दर्द समझ लिया, दोनों जीभर रोना चाहते थे, एक-दूसरे से अपनें-अपने मन की बातें कहकर मन हल्का करना चाहते थे लेकिन दोनों में से किसी ने भी ऐसा नहीं किया क्योंकि समाज के कुछ बन्धन और नियम होते हैं जो कि किसी भी सामाजिक प्राणी को ये करने की अनुमति नहीं देते, या कहें कि समाज में रहने के लिए इंसान खुद ही एक दायरा बना लेता है और वो ...और पढ़े
संगम--(अंतिम भाग)
शाम का समय था,गुन्जा मां को लेकर मंदिर गई थी, सीताराम जी दुकान पर बैठे थे,श्रीधर शाम की चाय आया__ प्रतिमा ने सोचा, अच्छा मौका है, श्रीधर से गुन्जा के विषय में पूछने का, उसने श्रीधर को चाय देते समय हिम्मत करके पूछ ही लिया कि तुम्हें गुन्जा कैसी लगती है? अच्छी है,स्वभाव अच्छा है, खाना अच्छा बनाती है,श्रीधर बोला। मैंने ये नहीं पूछा,मेरा इरादा तो कुछ और ही है, मैं सीधे-सीधे पूछती हूं,क्या तुम गुन्जा से ब्याह करोंगे,प्रतिमा बोली। श्रीधर बोला,सच बताऊं प्रतिमा___ मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं गुन्जा से प्रेम करने लगूंगा, क्योंकि मैंने ...और पढ़े