अध्याय - एकॐ भूर् भुवः स्वःतत् सवितुर्वरेण्यंभर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात्…बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।इन श्लोको के साथ गुरु जी ने उपदेश शुरू किया। सारे शिष्य हाथ जोड़े गुरु के चरणों को स्पर्श किया। "आज का उपदेश मे हम अर्जुन के उस कथन को लेंगे जिसमे वो पूछते है - हे कृष्ण आप एक तरफ कहते हो हम कुछ नही करते, जो भी होता है वो सब पहले से सुनिश्चित है, हमारा उसमे कोई हाथ नही है, और दूसरी तरफ कहते हो हमारा धर्म लड़ना ही है। ये दो बिपरित बाते क्यों?

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चुन्नी (अध्याय-एक)

अध्याय - एकॐ भूर् भुवः स्वःतत् सवितुर्वरेण्यंभर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात्…बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।महामोह पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।इन श्लोको के साथ गुरु जी ने उपदेश शुरू किया। सारे शिष्य हाथ जोड़े गुरु के चरणों को स्पर्श किया। "आज का उपदेश मे हम अर्जुन के उस कथन को लेंगे जिसमे वो पूछते है - हे कृष्ण आप एक तरफ कहते हो हम कुछ नही करते, जो भी होता है वो सब पहले से सुनिश्चित है, हमारा उसमे कोई हाथ नही है, और दूसरी तरफ कहते हो हमारा धर्म लड़ना ही है। ये दो बिपरित बाते क्यों? ...और पढ़े

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चुन्नी - अध्याय दो

चुन्नी अपने नाम के हिसाब से ही है।बिल्कुल वैसा ही जैसा उसका नाम है।बचपन से ही भोला और नादान।लोग भोलेपन का फायदा उठा लेते है। बचपन से चुन्नी को पढ़ने का बड़ा शौक था।उसे क्या पता था यही शौक उसे एक दिन कही और ले जायेगा। पढ़ने के इसी लत मे वो अजीबो गरीब कारनामे करता था। किताब लेकर कभी बिस्तर के नीचे,कभी संदूक के पीछे, कभी छत पर, कभी खेतो मे बैठ कर।पूरा परिवार उसके इस आदत से परेशान रहते थे। वो घंटो घंटो गायब रहता था। इस नशे मे उसने घर के सारे किताब पढ़ डाले। फिर जब ...और पढ़े

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चुन्नी - अध्याय तीन

वैसे आत्म निर्भर होने की कोई उम्र नही होती पर उस बालक के लिए मुश्किल है जो घर से बाहर निकला ही नही।चुन्नी सत्रह साल तक अकेले कभी घर से बाहर निकला नही था, और आज अकेले दूर करीब सात सौ मील मद्रास जा रहा है।सबसे दूर का सफर उसने घर से आधे मील दूर गुरुजी के आश्रम तक का तय किया था अभी तक, जहाँ वो रोज शाम को जाता था।अपने साथ बाबूजी को लाना चाहता था, पर गुरुजी ने साफ मना कर दिया था ये कहते हुए कि अब तुम अपना काम खुद किया करो,आखिर कब तक ...और पढ़े

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चुन्नी - अध्याय चार

चारबहुत बड़ी ईमारत थी जिसपे मोटे अक्षरों मे लिखा था केंद्रीय प्रोधीगिकी संस्थान वाराणसी,चुन्नी उसके मुख्य द्वार पर खड़ा चार दरबान खड़े थे,उनमें जो एक अधेड़ उम्र का था वो कागजी काम करवा रहा था,कौन हो कहाँ से आये आने का उदेश्य क्या है वगैरह वगैरह।चुन्नी भी वहाँ पहुँचा और अपना नाम बताया।दरबान ने ऊपर से नीचे तक देखा। "नया दाखिला हो। " उसने बोला"जी आज ही आया हु। " चुन्नी बोला। "अंदर ही रहोगे या बाहर कही देखा है जगह रहने का। " उसने पूछा। "जी बाहर ही।हॉस्टल ज्यादा महंगा है मेरे ख़र्चे के बाहर है।" चुन्नी बोला। "ठीक है।दाखिले का कार्य ...और पढ़े

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चुन्नी - अध्याय पाँच

कॉलेज का पहला दिन। चुन्नी हर तरफ संसा के नजरो से देख था। हर चीज नई थी वहाँ, हर नये थे। उपर से पहले कभी अकेले वो कही गया नही ना ही कभी अकेले रहा। माँ पापा हमेशा साथ होते थे।वहाँ अब वो अकेला था, जो बाजी करना था, जो भी अनुभव होना था सब अकेले। चुन्नी धीरे धीरे पीठ पर पिट्ठू झोला टाँगे आगे बढ़ रहा था। वो अपने कक्ष की तलाश कर रहा आगे बढ़ रहा था। एक गार्ड चुन्नी को ससंकित देख पूछा"कहाँ जाना है? ""फर्स्ट ईयर मे"चुन्नी घबराते हुए बोला। " तीसरे माले पर है चले जाओ। "गार्ड ...और पढ़े

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