अब लौट चले आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मै सच में आज़ाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी, सब कुछ नया और सुकून से भरा गर्त के अँधेरे को चीर मेरे कदम नए उजाले की और अनयास ही बढ़ चुके थे, ठीक उसी तरह जब मै मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए नये शहर मे आ बसी थी.. शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की ख़ुशी मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानो में गूंजते है...क्या हुआ जान तुम
Full Novel
अब लौट चले - 1
अब लौट चले आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मै सच में आज़ाद हूं, सारी दुनियां आज पहली मुझें नई लग रहीं थी, सब कुछ नया और सुकून से भरा गर्त के अँधेरे को चीर मेरे कदम नए उजाले की और अनयास ही बढ़ चुके थे, ठीक उसी तरह जब मै मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए नये शहर मे आ बसी थी.. शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की ख़ुशी मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानो में गूंजते है...क्या हुआ जान तुम ...और पढ़े
अब लौट चले - 2
मेरी तो किस्मत ही ऐसी है पिछली शादी की साल गिरह भी ऐसी ही निकल गई... जानू तुम अपना छोटा मत करो... अभिषेक को मै सम्हाल लूंगा आज तुम घूम आओ... मैंने उसे प्रश्न वाचक की नज़रो से देखा था... तो मनु ने अपना पर्श मेरे हाथ पर रखा दिया था मैंने फ़ौरन पर्स को अपने हांथो के कब्जे मे करते हुए उसको हलकी सी स्माइल दी थी... कि तभी बाहर से कार के हॉर्न की आवाज़ ने माहौल को बदल दिया था... जाओ जानू रवि आ गया है... इतना सुनते ही मै जल्दी से उठते हुए बाहर की तरफ भागी थी... मेरे ...और पढ़े
अब लौट चले - 3
अब लौट चले -3शायद रवि को मनु की बात का बुरा लगा था... मै उसके पीछे पीछे जानें लगी रवि... रवि... आप तो बुरा मान गये...?और मै झट से कार के दरवाजे के सामने अड़ कर खड़ी हों गई... थी रवि ने मेरे चेहरे को देखते हुए अपना मुँह मेरे मुँह के नज़दीक ला कर मीठी सी मिश्री घोलती हुई आवाज़ में कहा था.. गुड नाईट संध्या... और रवि ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हांथो से पकड़ कर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये थे मै कुछ ना कर सकी थी उसकी सांसे मेरी सांसो के साथ समा चुकी थी ...और पढ़े
अब लौट चले - 4
अब लौट चले -4तभी बस का हॉर्न बजा तो मेरी तन्द्रता भंग हुई... लोग बस में बैठने लगे थे... बस धीरे -धीरे रेंगने लगी थी.. मन असमंजस में हिचकोले लें रहा था जाऊ के ना जाऊ.. लेकिन ना जाऊ तो कहा जाऊ... बस ने रफ़्तार पकड़ लीं... मेरी धड़कने तेज़ होने लगी थी... मन बार -बार उचट रहा था क्या मुँह लेकर जा रहीं हू किस हक़ से जा रहीं हूं... लेकिन शरीर मनु के पास खींचा चला जा रहा था एक ज़िन्दा लाश की तरह... वो वक़्त भी आ गया जब मै अपने पुराने घर जहाँ दुल्हन की तरह ...और पढ़े
अब लौट चले - 5
यहाँ देख ऐसा लग रहा था... ये वही बेड जो आज भी बैसा ही हैं बेड पर बिछी ये भी तो वही हैं... उफ़... ये में क्या देख रहीं हूं... यहां तो सब कुछ उसी दिन से थमा हुआ सा हैं... आप बैठिये... वो उस चेयर पर ही बैठिएगा... और वो वहाँ से चला गया... मै अपने बैठने की उस कुर्सी को देख रहीं थी... जिसे सिर्फ मेरे लिए ही मनु लेकर आया था... इस वक्त उस कुर्सी पर धूल जमीं हुई थी... ऐसा लग रहा था शायद ये घर काफ़ी दिनों बाद खोला गया हों.... तभी अभिषेक हाँथ में पानी ...और पढ़े
अब लौट चले - 6
अब लौट चले -6अभिषेक का हर शब्द में मेरे प्रति प्रतिशोध था... ये देखिये मेरे पिताजी और मेरी कितने खुश है एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए.. लेकिन शायद मेरे पिता के जीवन में वैवाहिक सुख नसीब में नहीं था... वो थोड़ा चुप सा हो गया था बोलते बोलते मैंने उसे संतभावना देंने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि उसने चिढ़ते हुए कहा था... मुझें हाथ मत लगाना, आपकी कोई सहानुभूति नहीं चाहिए... और वो एल्वम के पन्ना पलटते - पलटते बोलता जा रहा... इतने सालों की उसके मन में भरी खीज शायद अब निकल रहीं थी 8-10 पन्ने ...और पढ़े
अब लौट चले - 7
कुछ देर हम दोनों यूही बैठे रहे.... मै दोषी थी वो निर्दोष था मै सिर झुकाये बैठी थी अभिषेक देख रहा था... बिलकुल मनु के गुण वही मिज़ाज़ वही शक्ल सूरत संस्कार मनु ने अभिषेक को काफ़ी अच्छे दिये हैं उसके हर लफ्ज़ो में कितनी मर्यादा हैं... कितना धैर्य हैं इतना तो अमन और शिखा में नहीं... मुझे परवरिश का अंतर साफ दिखाई दें रहा था उन दोनों से कितना अलग हैं अभिषेक... क्या सोच रहीं हैं संध्या जी...? यही ना आप जिससे मिलने आयी वही नहीं दिखाई नहीं दें रहें हैं... यही ना...? इस बात पर मैने उसे उत्सुकता वस ...और पढ़े
अब लौट चले - 8
और में फिर हारी हुई सी बेड पर आकर लेट गई थी.. मन में काफ़ी जद्दोजहद थी कभी मन के क्यों ना गुम नाम ही हो जाऊं... किसी को कुछ भी ना पता चले... लेकिन कैसे...? बस एकबार मनु को जी भर के देख लूं... बस फिर कभी किसी के सामने नहीं आउंगी.... लेकिन उसे देखने भर से क्या मुझें सुकून मिलेगा...? शायद ये भी तो हो सकता हैं कि वो मुझें एकबार देखें और फिर मोहब्बत जाग जाए... वो तो मुझसे प्यार करता था... मेरे लिए तो उसने क्या नहीं किया इतने सालों तक यहां मेरी ही यादों के सहारे ...और पढ़े
अब लौट चले - 9
अब लौट चले -9किसी ज़माने में इस घर में मेरी मर्ज़ी चला करती थी और मनु चुपचाप मेरी ज़िद आगे झुक जाया करता था. ठीक उसी तरह आज में अभिषेक के आगे झुक गई थी एक अजीब सी दहशत उसके चेहरे पर दिखाई दी थी... जिसने मुझें सहमने पर मज़बूर कर दिया था... सुबह के 4 बज चुके थे अभिषेक मेरे पास आया था... में जाग रहीं थी.. संध्या जी... ! चलिए जल्दी से तैयार हो जाइये बस हमें 1 घंटे में निकलना हैं... मुझें लगता हैं तुम बेबजह परेशान हो रहें हो.. देखिये सुबह सुबह मै कोई फालतू बात ना करना चाहता ...और पढ़े
अब लौट चले -10 (अंतिम भाग)
अब लौट चले -10सामने के दरवाजे से रवि, अरविन्द और संजना अंदर आ रहें थे. सहमे और डरे हुए रवि अपना सर झुकाये चुप चाप मनु के सामने खड़ा हो गया था... बैठिये आप लोग... नो सर थेंक्स.... रवि ने कहा था इस वक़्त हम एक सामान्य दोस्त हैं रवि बैठ जाओ और रवि मेरे पास आकर बैठ गया था अरविन्द और संजना दूसरी तरफ बैठ गये थे.. तभी मनु ने रवि से पूछा था.... आप मेरी इस फर्म में कितने वर्षो से काम कर रहें हैं...? जी सर लग भग 15-16 सालों से इन 15-16 सालों में मैंने कभी आपको आपके किसी भी परसनल मेटर ...और पढ़े