बदलते रंग

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स्त्री और पुरुष के चरित्र को लेकर, समाज के दोहरे मानदंडों पर प्रश्न उठाती हुई कहानी. समाज से मिली कुंठा में डूबी हुई नायिका, अपनी मनोग्रंथि से कैसे उबर पाती है- इस कहानी में यही दर्शाया गया है.