कागज़ की कश़्ती

  • 18.1k
  • 2
  • 2.7k

जब बड़ा हुआ तब स्त्री होने की वेदना समझ में आई कि एक लड़की तो अपने मन को बड़ा कर माँ की भूमिका निभा सकती है लेकिन यह समाज उसकी एक भूल को उदारता से सह नही सकता. उसके प्रायश्चित में उसे अपने प्राण देने पड़ते हैं.