ख्वाबो के पैरहन - 4

(17)
  • 6.1k
  • 2.7k

धूप कमरे में आ चुकी थी निक़हत फूफी को झंझोड़ रही थी “उठिए फूफी जान.....देखिए कितना दिन चढ़ आया है ” फूफी घबराकर उठ बैठीं..... रात कब तक जागती रहीं, याद नहीं..... शाहजी को ताहिरा के कमरे में दाखिल होते देखा था..... फिर यादों के झंझावात में कितनी ही देर वे जागती रहीं थीं..... न जाने कितनी बातों को लेकर वे रोई थीं..... गालों पर आँसू सूख गए थे, शायद रोते-रोते सोई होंगी या अल्लाह! ऐसे तो वे कभी नहीं सोईं? भाईजान के घर में तो पाँच बजे से ही काम शुरू हो जाते थे, न जाने कैसे वह इतना सोती रही