और फिर थोड़ी ही देर में फ़हीमा बिस्तर पे और वहाब की बाहों में थी. जैसे दोनों बस दरवाज़े के बन्द होने का इन्तज़ार कर रहे थे. वहाब ने फ़हीमा के जिस्म को बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया, जैसे अब वो दुबारा नहीं मिलने वाली थी. फ़हीमा को तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करे वो तो बस अपने आप को सँभालने में ही लगी हुई थी. वहाब के छूने से उसके बदन में जो सनसनाहट पैदा हो रही थी, उससे उसे सबकुछ बड़ा अजीब लग रहा था. पहली बार किसी मर्द ने उसके कोरे जिस्म को छुआ था. और वहाब तो उसे ऐसे छू रहा था, जैसे उसने औरत का जिस्म पहली बार देखा है.