ख्वाबो के पैरहन - 1

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चूल्हे के सामने बैठी ताहिरा धीमे-धीमे रोती हुई नाक सुड़कती जाती और दुपट्टे के छोर से आँसू पोंछती जाती अंगारों पर रोटी करारी हो रही थी खटिया पर फूफी अल्यूमीनियम की रक़ाबी में रखी लहसुन की चटनी चाटती जा रही थी- “अरी, रोटी जल रही है..... दे अब रोती ही जाएगी क्या?” ताहिरा ने आँखें पोंछीं और रोटी की राख झाड़ फूफी को पकड़ा दी.....बस, आख़िरी दो लोई बची है फूफी हमेशा अंत में खाती हैं, जब सब खा चुकते हैं