कोलाज

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शाम के धुंधलके में खिड़की से बाहर मैं क्या देख रही थी मुझे भी नहीं पता। थोड़ी देर में आकाश एक काली गुफा हो जाएगा बिल्कुल ब्लैक होल जैसा.....अंधेरा धीरे-धीरे सारी सृष्टि को अपने आगोश में भर लेगा। मुझे भी। हल्की ठंडक की चादर सारा शहर ओढ़ लेगा, मैं भी ओढ़ लूंगी। पर भीतर कुछ गरमाता रहेगा जो मुझे रात भर सोने नहीं देगा। मैं उस हल्की ठंडक की चादर को ओढ़ कर गहरी नींद सोना चाहती हूँ पर नहीं, रात भर करवटें लेते ही बीतेगी।