अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- 5

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पता नही कितना समय बीता था कि एक अजीब से भय के वश मेरी नींद खुल गयी । मेरी आंखे खुली तो खुली की खुली रह गयी । मेरा भय मेरे सामने था । मेरे बिल्कुल समीप … इतना समीप कि उसकी सांसों को मै अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था । उसकी सांसों की बदबू से मेरा दम घुटा जा रहा था । यह वही था । बिल्कुल वही । (इसे पढ़ने से पूर्व इसके पूर्ववर्ती चारों भाग ज़रूर पढ़ लें_ धन्यवाद)