संग्राम अंक 2

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अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है। मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट ! संग्राम नाटिका का दूसरा खंड दस दृश्य में बंटा हुआ है इसमें किसान द्वारा की जानेवाले फिजूल खर्चिया व् मनोरंजन हेतु अन्य बेफिक्री से उडाए जानेवाले पैसे के विषय में प्रकाश उजागर होता है