पुनर्जन्म -

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मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ .... ये सन्नाटा कभी गहरी धुंध बनकर मुझे घेर लेता है और मैं आँखें फाड़ - फाड़कर देखने की कोशिश करने पर भी कुछ देख नहीं पाती हूं ...कभी कीचड़ की तरह छितर कर मेरे पैरों से लिबड़ जाता है और मेरे लिए एक कदम भी चलना मुश्किल... कभी अंधेरी गुफ़ा बनकर मुझे लीलने के लिए मुँह फाड़े धीरे धीरे आगे बढ़ता नज़र आने लगता है और मैं घबराकर आँखें बंद कर लेती हूँ ....और कभी ये मुझे उड़ाकर ले जाता है और सृष्टि के अन्तिम छोर पर ले जाकर खड़ा कर देता है जहाँ कोई नहीं होता , न कोई इंसान न कोई जानवर ....।