पागलपन का इलाज - 3

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उसने कहा,"अब वास्तव में उससे मिलने का कोई औचित्य समझ नहीं आता. मैं समझता हूँ कि हम दोनों के मध्य स्वार्थ की एक बहुत गहरी विभाजक रेखा खिंच गई है जो हमारे आपस के प्रेम और आत्मीयता से अधिक भारी है. फिर मैं तो जैसा के तैसा रह गया और वह अब अमीर हो गए हैं. अमीरों के अपने बड़े-बड़े मुसीबत हैं तो गरीब की छोटी-छोटी परेशानी भी उसके लिये उतनी ही बड़ी होती है. इसलिए बेहतर यही है कि हम दोनों अपनी-अपनी जगह पर और अपने-अपने समाज में रहें. फिर अपनी मुसीबत को अपने-अपने तरीके और प्रयत्न ही से हल करना चाहिये." मुझसे कुछ प्रतिउत्तर कहते नहीं बना. अब हम दोनों नर्सिंग होम से बाहर आ चुके थे. हम वापस अपने ड्यूटी पर लौट गये, क्योंकि तब स्वास्थ्य विभाग में नौकरी पेशा व्यक्ति ज्यादा दिन छुट्टी पर नहीं रह सकते थे.