मीडाज़ टच वाली हैटट्रिक

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इंस्पेक्टर यादव को जिन बातों से तकलीफ होती थी उनमे कौन सबसे ज़्यादा तकलीफ़देह थी, कौन कुछ कम- बताना कठिन नहीं था. सबसे अधिक कष्ट तब होता था जब एस एच ओ अर्थात थानाध्यक्ष बन जाने के बाद भी कोई उन्हें केवल इंस्पेक्टर साहेब कह कर बुलाता था. फिर तो उस साले को हवालात में बंद करके दो जूते लगाने का मन होता था. ऐसा होना स्वाभाविक भी था. कितने पापड बेल कर सैकड़ों में से एक नायब दारोगा एस एच ओ की गद्दी हासिल कर पाता है किसी उल्लू के पट्ठे को मालूम हो तब न!