ग्रीन कार्ड

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अभय बैंक में काम करता था। महत्वाकांक्षा तो उसमें कूट-कूटकर भरी थी। किसी भी तरह विेदेश जाकर बसने का उसका एक सपना था। हर रविवार को वह हिंदुस्तान टाइम्स का मैट्रिमोनियल कॉलम बहुत दिल लगाकर पढ़ता था कि कहीं कोई विदेश में बसा परिवार संभवत: उसे भी वहीं बुला ले। वह किसी से भी जल्दी घुलता-मिलता नहीं था। उसके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा आकर्षण था कि सामने वाला उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। कल ही राज ने उसे बताया था कि शारदा का अमेरिका जाना लगभग निश्चित है। अभय को शारदा देखने में सुंदर नहीं लगी, पर उसे सुंदरता से क्या मतलब उसे तो विदेश जाने का टिकट चाहिए था और शारदा में उसे अपना सपना पूरा होता दिखायी दिया।