डिम्पल उसकी पहले से ही प्रतीक्षा कर रही थी। वह बार-बार हॉल की तरफ देखती। बलराज आज कुछ लेट हो गया था। आखिर उसने कोने वाली खिड़की में से बलराज को अन्दर आते हुए देखा। वह टकटकी लगाकर सजे-संवरे बलराज को सिर से लेकर पैरों तक निहारती रही। डिम्पल की देह में झनझनाहट-सी छिड़ी और दिल में कोई मिठास-सी घुल गई। बलराज ने भी करीब आकर ‘हैलो’ करते हुए डिम्पल के चेहरे की खुशी पढ़ ली। उसने बलराज को ऊँचे बैड पर उलटा लिटा दिया और मशीन चालू कर दी। डिम्पल मशीन से मसाज कर रही थी और साथ ही, दोनों छोटी-छोटी बातें किए जा रहे थे। इन दो-तीन दिनों में ही बलराज ने भांप लिया था कि मछली तो फुदकती फिरती है, बस जाल फेंकने की देर है।